शंकर लालवानी की लीड क्या इस बार 10 लाख के ऊपर जाएगी ?
इंदौर में 61.71 फीसदी हुआ मतदान , कम वोट के लिए कौन दोषी
इंदौर। इंदौर जिले में सोमवार को लगभग 15 लाख 70,000 लोगों ने वोटिंग की। इस हिसाब से कहा जा सकता है कि भाजपा सांसद शंकर लालवानी की लीड 14 लाख से ऊपर जा सकती है। इंदौर की सीट पर कांग्रेस के पास लगभग 5 लाख परंपरागत मतदाता हैं। इन प्रतिबद्ध मतदाताओं में से एक लाख से अधिक वोट नोटा को नहीं मिलेंगे। शेष लगभग 60 – 70 हजार वोट निर्दलीय प्रत्याशियों के हटा दें, तो शंकर लालवानी को 14 लाख के करीब मत मिलेंगे। जाहिर है उनकी अधिकतम बढ़त 13,50,000 से 14 लाख तक हो सकती है।
यह एक ऐसा कीर्तिमान होगा जिसे भंग करने में लंबा समय लगेगा। सनद रहे निर्वाचन आयोग के नियम के अनुसार नोटा को प्रत्याशी की तरह नहीं माना जाता। यानी नोटा की जीत को जीत नहीं माना जाता बल्कि दूसरे नंबर के प्रत्याशी को विजई घोषित किया जाता है।
ऐसे में शंकर लालवानी की लड़ाई उस निर्दलीय प्रत्याशी से होगी ,जिसे अन्य निर्दलीय प्रत्याशियों के मुकाबले अधिक मत मिलेंगे। यानी शंकर लालवानी की ऑफिशियल लीड वही मानी जाएगी जो उनके और सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले निर्दलीय प्रत्याशी के बीच अंतर होगा। इंदौर में नौ निर्दलीय प्रत्याशी उम्मीदवार हैं। इनमें भारतीय जनहित पार्टी के अभय जैन भी हैं जो संघ के प्रचारक रह चुके हैं।
अभय जैन किसी भी स्थिति में 15 से 20,000 से अधिक मत नहीं ला पाएंगे। वो ही निर्दलीयों के सबसे अधिक वोट लेने वाले प्रत्याशी हो सकते हैं। ऐसे में अभय जैन और शंकर लालवानी के बीच के वोट का अंतर भाजपा की लीड माना जाएगा। बहरहाल, 4 जून के बाद सभी दूर केवल शंकर लालवानी की जीत की चर्चा होगी। लोग अक्षय कांति बम के विश्वास घात को भूल जाएंगे।
इसी तरह यदि एक लाख से ऊपर नोटा बटन दबे तो उसकी भी चर्चा होगी। कुल मिलाकर इंदौर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस समाप्त होने की स्थिति में आ गई है। ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में इंदौर में कोई अन्य राजनीतिक दल कांग्रेस की स्पेस ले सकता है। मौजूदा स्थिति के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है। कांग्रेस ने इंदौर को कभी अपने फोकस में नहीं रखा। मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी इंदौर के नेता हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में उन्होंने इंदौर को लावारिस छोड़ दिया था।
29 अप्रैल को जब अक्षय कांति बम ने कथित बम फोड़ा तब जाकर जीतू पटवारी और कांग्रेस नींद से जागे और नोटा के लिए अभियान प्रारंभ हुआ। यदि नोट के लिए कांग्रेस शोर शराबा नहीं करती तो भाजपा कार्यकर्ता भी सुस्त बैठे रहते। ऐसे में मतदान का प्रतिशत 40 से ऊपर नहीं जा सकता था, लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह से नोटा हैं के पक्ष में मुहिम छेड़ी उससे न केवल भाजपा बल्कि सामाजिक संगठन भी आगे आए और उन्होंने ज्यादा से ज्यादा मतदान करने की अपील की। जाहिर है जितना अधिक मतदान होगा उतना भाजपा को लाभ मिलेगा। यही वजह की 61.71 फीसदी का सम्मानजनक मतदान भाजपा को रिकॉर्ड जीत के लिए पर्याप्त साबित होने वाला है।
कांग्रेस के लिए अक्षय का अंतिम बम के साथ ही मोती पटेल भी खलनायक साबित हुए। मोती पटेल ने जानबूझकर अपना डमी पर्चा खारिज करवाया। बाद में जब उनकी हरकत का पता चलने लगा तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जाने का नाटक किया। हालांकि उन्हें अच्छी तरह से मालूम था कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट उनकी हरकत पर किसी भी तरह से नोटिस नहीं ले सकता। मोती पटेल ने सुप्रीम कोर्ट जाने का नाटक केवल यह दिखाने के लिए किया कि उन्होंने पर्चा जानबूझकर खारिज नहीं करवाया था। हालांकि मोती पटेल की चालाकी काम नहीं आई। मैसेज यही गया कि उन्होंने भाजपा के साथ मिली भगत कर अपना डमी फॉर्म निरस्त करवा दिया। जब अक्षय कांति बम और मोती पटेल दोनों ने ही पार्टी से गद्दारी की तो इसका दोष भाजपा को देना जनता को सही नहीं लगा। यही वजह कि इंदौर की जनता ने अच्छा खासा मतदान किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अपना समर्थन जाहिर किया।