नित्य उपयोगी साबून,तेल में भी महंगाई का तडका
-नेशनल स्टेटिस्टिकल ने जारी किए आंकडे
-खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें बढने से महंगाई ने तेजी का रूख पकडा
उज्जैन। 20 रूपए किलों का आलू सीधे 100 रूपए का ढाई किलो पर आ धमका है। इसके साथ ही खाने पीने की चीजों में बराबर भाव बढे हैं। मार्च की अपेक्षा अप्रेल और मई में भावों में वृद्धि ज्यादा हुई है। इसका सीधा असर गरीब की थाली पर हो रहा है। नित्य उपयोग की वस्तुओं में शामिल साबून,तेल में भी महंगाई का तडका तेज हो गया है। आंकडों पर नजर डालें तो महंगाई दर में कमी आई है।
खाने पीने की चीजों की कीमतों में बराबर इजाफा होने के कारण महंगाई का असर अन्य चीजों पर भी आया है। इसका एक कारण यह भी सामने आया है कि थोक महंगाई बडे रहने से एक समय उपरांत उसका भार उत्पादक उपभोक्ता पर डाल रहा है। नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस ने 14 मई को महंगाई को लेकर आंकड़े जारी किए है। इसमें बताया गया है कि अप्रैल महीने में थोक महंगाई बढ़कर 1.26 प्रतिशत हो गई है। यह महंगाई का 13 महीने का उच्चतर स्तर है। इससे पहले मार्च 2023 में थोक महंगाई दर 1.34 प्रतिशत थी। खाने-पीने की चीजों की कीमत बढ़ने से महंगाई बढ़ी है। वहीं इससे एक महीने पहले मार्च 2024 में ये 0.53 प्रतिशत रही थी। जबकि, फरवरी में थोक महंगाई 0.20 प्रतिशत और जनवरी में 0.27 प्रतिशत रही थी।
खाद्य महंगाई दर 4.65 से 5.52 पर पहुंची-
खाद्य महंगाई दर मार्च के मुकाबले 4.65 प्रतिशत से बढ़कर 5.52 प्रतिशत हो गई। रोजाना की जरूरतों के सामानों की महंगाई दर 4.51 प्रतिशत से बढ़कर 5.01 प्रतिशत हो गई है। फ्यूल और पावर की थोक महंगाई दर 0.77 प्रतिशत से बढ़कर 1.38 प्रतिशत रही। मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्टस की थोक महंगाई दर 0.85 प्रतिशत से बढ़कर 0.42 प्रतिशत रही
रिटेल महंगाई में आई गिरावट-
इससे पहले अप्रैल में खुदरा महंगाई (रिटेल इन्फ्लेशन) दर 11 महीने में सबसे कम रही। अप्रैल में यह घटकर 4. 83 पर आ गई है। जून 2023 मैं यह 4.81 प्रतिशत थी। हालांकि, अप्रैल में खाने-पीने की चीजें महंगी है। वहीं एक महीने पहले यानी मार्च 2024 में महंगाई की दर 4.85 प्रतिशत रही थी। खाद्य महंगाई दर 8.52 प्रतिशत से बढ़कर 8.78 प्रतिशत पर पहुंच गई है। ग्रामीण महंगाई दर 5.45 प्रतिशत से घटकर 5.43 प्रतिशत आ गई और शहरी महंगाई दर 4. 14 प्रतिशत से घटकर 4.11 प्रतिशत पर आ गई है।
आम आदमी पर थोक महंगाई का असर-
थोक महंगाई के लंबे समय तक बड़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक उच्च स्तर पर रहता है, तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए डब्ल्यूपीआई को कंट्रोल कर सकती है। जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। डब्ल्यूपीआई में ज्यादा वेटेज मेटल,केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।
ये है महंगाई का मापदंड-
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (डब्लूपीआई) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। महंगाई मापने के लिए अलग- अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्टस की हिस्सेदारी 63.75 प्रतिशत, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02 प्रतिशत और फ्यूल एंड पावर 14.23 प्रतिशत होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86 प्रतिशत, हाउसिंग की 10.07 प्रतिशत और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है।