हर साल हजारों स्वाहा..फिर भी कुपोषण का दंश झेलने के लिए मजबूर उज्जैन संभाग

 

उज्जैन। उज्जैन जिला ही नहीं बल्कि पूरा संभाग कुपोषण की समस्या से मुक्त होने का नाम नहीं ले रहा है। संभाग में ऐसा कोई माह नहीं जाता होगा जब कुपोषित बच्चों की संख्या का आंकड़ा बढ़ता नहीं हो। सरकार की तमाम योजनाओं और दावों के बाद भी प्रदेश के साथ ही उज्जैन संभाग  कुपोषण का दंश झेलने के लिए मजबूर है। जबकि कुपोषण को खत्म करने के लिए हर साल हजारों रुपए खर्च कर दिए जाते है।
कुपोषित बच्चों को पोषण आहार, इलाज और अन्य सुविधाओं के लिए सरकार हर साल तकरीबन डेढ़ हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है। उसके बावजुद राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक उज्जैन सहित प्रदेश में 19 प्रतिशत बच्चे अल्प पोषित (मध्यम कुपोषित) और 6.5 प्रतिशत बच्चे अति गंभीर (तीव्र) कुपोषित हैं। कुल मिलाकर   1.36 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं।
7 पोषण आहार उत्पादन प्लांटों से
6 माह से 3 वर्ष तक के बच्चों और गर्भवती-धात्री महिलाओं को  सरकार द्वारा स्थापित 7 पोषण आहार उत्पादन प्लांटों से हर हफ्ते पोषण आहार के पैकेट उपलब्ध करवाए जाते हैं। इसे टेक होम राशन कहा जाता है, जबकि 3 वर्ष से 6 वर्ष की उम्र के बच्चों को स्थानीय स्तर पर यानी गांव/बस्तियों में ही महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से गरम पका हुआ पोषण आहार दिए जाने की व्यवस्था है। जमीनी अनुभव बताते हैं कि दोनों की व्यवस्थाओं में गंभीर उपेक्षा और गैर-जवाबदेहिता विराजमान है।

संभाग में भी जिला अव्वल..
जानकारी मिली है कि प्रदेश में कुपोषित बच्चों की संख्या में उज्जैन संभाग में भी उज्जैन जिला अव्वल है। संभाग में कुल 7 जिले शामिल है और में कुल 14 हजार से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार है। यह आंकड़ा एक अधिकृत जानकारी में सामने आया है। बीते कुछ माह पहले ही उज्जैन जिले में  तीन हजार से अधिक बच्चे  कुपोषण के सामने आए है। हैरानी की बात यह है कि मप्र लगातार आर्थिक विकास कर रहा है। उसके बावजुद कुपोषण चिंता का विषय बना हुआ है। रिजर्व बैंक आफ इंडिया के प्रतिवेदन के अनुसार वर्ष 2005-06 में मप्र का राज्य सकल घरेलु उत्पाद प्रचलित मूल्य पर 1242 अरब रुपये था, जो वर्ष 2015-16 में लगभग चार गुना बढक़र 5410 अरब रुपये और फिर वर्ष 2020-21 में साढ़े सात गुना बढक़र 9175 अरब रुपये हो गया। राज्य की आर्थिक विकास दर लगभग 11.5 प्रतिशत रही है। खेती में अद्भुत चमत्कारी विकास करने के लिए कई मर्तबा कृषि कर्मण पुरस्कार हासिल किया गया है, लेकिन ठीक इसी अवधि में बच्चों में कुपोषण की स्थिति क्या रही?
जागरुक नहीं रहते हैं
माधव नगर अस्पताल के चिकित्सकों के अनुसार  पालक अपने कुपोषित बच्चों के प्रति जागरुक नहीं रहते हैं। प्रभावित बच्चों को समय पर पोषण पुनर्वास केंद्र पर लाया जाए तो उनके इलाज के साथ वे स्वस्थ होकर अपने घरों पर जा सकते हैं। केंद्र पर 14 से 21दिन तक बच्चों को रखा जाता हैं। इस अवधि में कुपोषित प्रभावित बच्चों में परिवर्तन आ जाता है। इनके इलाज से लेकर उनके पौष्टिक आहार और पालकों के साथ काउंसलिंग कर उन्हें बच्चों के रखरखाव के बारे में समझाइश व जानकारी दी जाती हैं। यही नहीं पुनर्वास केंद्र पर लाने वाले बच्चे के लिए प्रेरक की राशि और उसकी माता की मजदूरी भुगतान किए जाने का भी प्रावधान हैं।