इंदौर में मरीज के लिए नागपुर से फ्लाइट से आया ओ बाम्बे पाजिटिव ब्लड

 

इस ग्रुप के भारत में सिर्फ 180 लोग, इस ब्लड ग्रुप का इंदौर में एक भी व्यक्ति नहीं

इंदौर । अस्पताल में भर्ती महिला मरीज के लिए नागपुर से ओ बाम्बे पाजिटिव ब्लड ग्रुप सोमवार को फ्लाइट से बुलवाया गया। इसे रेयर आफ द रेयरेस्ट ब्लड ग्रुप भी कहा जाता है। दरअसल , बड़नगर निवासी पवन पत्नी राहुल (26) को इलाज के लिए राबर्ट नर्सिंग होम में भर्ती करवाया गया, महिला के ब्लड की जांच की तो ओ बाम्बे ब्लड ग्रुप निकला। यह ब्लड ग्रुप काफी कम लोगों का होता है। भारत में सिर्फ 180 लोगों का ओ बाम्बे ब्लड ग्रुप है।

ओ बाम्बे पाजिटिव ब्लड ग्रुप
वहीं 30 लाख वाली आबादी वाले इंदौर में इस ग्रुप का कोई भी व्यक्ति नहीं है। इसके बाद डाक्टरों की टीम ने एमवायएच ब्लड बैंक से संपर्क किया, यहां भी यह नहीं मिला। फिर जांच में मरीज की बड़ी बहन संगीता में यह ब्लड ग्रुप पाया गया, जिससे एक यूनिट ब्लड महिला का चढ़ाया गया।
ब्लड काल सेंटर के अशोक नायक ने बताया कि हमने इसके लिए देशभर के डोनर से संपर्क किया। रविवार को शिर्डी से रविंद्र कार से ब्लड देने के लिए इंदौर आए थे, लेकिन इसके बाद भी दो यूनिट की आवश्यकता और थी। इसके बाद वर्धा से रोहित और नागपुर से एक युवक का ब्लड वहीं डोनेट हुआ और फ्लाइट के माध्यम से यहां आया। अब महिला स्वस्थ है। साथ ही बताया कि ओ बाम्बे पाजिटिव ब्लड ग्रुप इंदौर में तीसरी बार आया है। इससे पहले वर्ष 2014 में एक यूनिट और वर्ष 2018 में भी एक यूनिट आ चुका है।

1952 में बॉम्बे में हुई थी इसकी खोज

जानकारी अनुसार रेयर ब्लड ग्रुप में शामिल ओ बाम्बे पाजिटिव ब्लड ग्रुप की खोज वर्ष 1952 में डा. वाइएम भेंडे ने की थी। क्योंकि, यह खोज उस वक्त बाम्बे (अब मुंबई) में हुई थी, इस वजह से इसे बाम्बे ब्लड ग्रुप का नाम दिया गया। दूसरी वजह यह सबसे पहले बाम्बे के कुछ लोगों में पाया गया था। यह ब्लड ग्रुप ज्यादातर भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और मध्य-पूर्व क्षेत्र के कुछ हिस्सों में पाया जाता है।

यह ब्लड ग्रुप सिर्फ इसी ग्रुप के लोगों को चढ़ाया जा सकता है

विशेषज्ञों के मुताबिक इस ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति सिर्फ दूसरे ओ बाम्बे पाजिटिव ब्लड ग्रुप वाले से ही ब्लड ले सकते हैं। इसलिए इस ब्लड ग्रुप का जो भी व्यक्ति ब्लड डोनेट करता है, उसे स्टोर कर लिया जाता है। किसी दूसरे ग्रुप का खून चढ़ाने पर इस ब्लड ग्रुप के मरीज की जान खतरे में आ सकती है।