लोकसभा परिणाम कांग्रेस के आदिवासी नेताओ की राजनीति करेगा तय
प्रदेश संघठन में अब राष्ट्रीय स्तर का बढ़ सकता है हस्तक्षेप
इंदौर। 4 जून को चुनाव परिणाम के बाद मालवा और निमाड़ अंचल की आदिवासी राजनीति में परिवर्तन देखने को मिलेगा। इस क्षेत्र में 22 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं। यहां एक करोड़ से अधिक आदिवासी मतदाता हैं। इंदौर संभाग की पांच में से तीन सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं।
रतलाम झाबुआ, खरगोन और धार के अलावा खंडवा जैसी सामान्य सीट पर भी भारी संख्या में आदिवासी मतदाता रहते हैं। अभी भी आदिवासियों में नंबर एक पार्टी कांग्रेस ही मानी जाती है। कांग्रेस के पास आदिवासी नेताओं की बड़ी संख्या है। विधानसभा चुनाव के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस में जो परिवर्तन देखने को मिल रहा है, उसका असर 4 जून के बाद मुकम्मल तौर पर दिखेगा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह हनी बघेल, पूर्व मंत्री बाला बच्चन और युवा कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत भूरिया इसी अंचल के प्रमुख आदिवासी नेता हैं। मुख्य रूप से यहां लंबे समय तक दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच गुटीय प्रतिस्पर्धा थी।
बाला बच्चन, उमंग सिंघार, डॉ हीरालाल अलावा, झूमा सोलंकी, हर्ष गहलोत, मुकेश और महेश पटेल जैसे नेता जहां कमलनाथ के खास माने जाते थे। वहीं दूसरी ओर कांतिलाल भूरिया, विक्रांत भूरिया, सुरेंद्र सिंह हनी बघेल प्रताप ग्रेवाल जैसे नेता दिग्विजय सिंह खेमे के खास माने जाते हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद यहां समीकरण बदले और अब यहां जीतू पटवारी बनाम उमंग सिंघार की लड़ाई है। कांग्रेस मानकर चल रही है कि रतलाम झाबुआ सीट पर वह जीत रही है। यदि कांतिलाल भूरिया चुनाव जीतते हैं तो सबसे ज्यादा तकलीफ उमंग सिंघार को होगी।
कांतिलाल भूरिया को राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस संगठन में बड़ा पद दे सकती है। इसी के साथ विक्रांत भूरिया को भी अच्छी पोस्टिंग दी जाएगी। यदि धार लोकसभा में कांग्रेस की विजय होती है तो उमंग सिंगार का दबदबा बढ़ेगा। इसी तरह यदि खरगोन में कांग्रेस जीत दर्ज करती है तो इसका फायदा बाला बच्चन को होगा।
कमलनाथ के तेवर से समर्थक प्रसन्न —
पिछले दिनों कमलनाथ ने लगातार भाजपा सरकार पर तीखे हमले किए हैं। छिंदवाड़ा में आठ लोगों का हत्याकांड या सागर का दलित उत्पीड़न प्रकरण हो सभी में कमलनाथ ने भाजपा सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं रखी है। कमलनाथ ने इस तरह की बयान बाजी कर संकेत दिया है कि वो प्रदेश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते रहेंगे।
इसके पहले चर्चा थी कि शायद कमलनाथ प्रदेश की राजनीति में हस्तक्षेप ना करें। कमलनाथ के सक्रिय होने से मालवा और निमाड़ अंचल के उनके समर्थक प्रसन्न हैं। खासतौर पर सज्जन सिंह वर्मा, रवि जोशी डॉ विजयालक्ष्मी साधो जैसे उनके समर्थक उत्साहित हो गए हैं। जीतू पटवारी के अध्यक्ष बनने के बाद यह आशंका थी कि कमलनाथ के समर्थकों को आइसोलेट किया जाएगा, लेकिन अब लग रहा है कि ऐसा नहीं होगा।
जाहिर है आने वाले दिनों में प्रदेश कांग्रेस में दिलचस्प समीकरण बनने वाले हैं।