इंदौर में बोले मुख्यमंत्री मोहन यादव- होलकर शासन में मोड़ी लिपि में लिखे ग्रंथों का होगा अनुवाद
पाठयक्रम का हिस्सा बनेगी देवी अहिल्याबाई होलकर की लोकनीति, न्याय व्यवस्था व शासन प्रबंधन
इंदौर। होलकर शासन में मोड़ी लिपि में लेखन का कार्य होता था। मोड़ी लिपि में लिखे ग्रंथों का अब अनुवाद करवाकर हिंदी और अंग्रेजी में पुस्तकें प्रकाशित करवाई जाएंगी। इसके बाद उन्हें प्रदेश की शिक्षा नीति का हिस्सा बनाएंगे, ताकि लोग इनके माध्यम से देवी अहिल्याबाई की लोकनीति, न्याय व्यवस्था, राजनीतिक रणनीति और बेहतर शासन प्रबंधन के बारे में जान सकें। यह बात शुक्रवार को लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह में मुख्यमंत्री डाॅ. मोहन यादव ने कही।
सेवा, समर्पण और त्याग की प्रतिमूर्ति लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर जी की जयंती के अवसर पर इंदौर के अभय प्रशाल में आयोजित लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह में सहभागिता की और विचार साझा किये।
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने होलकर शासन में मोड़ी लिपि में लिखे ग्रंथों के अनुवाद की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि राजवाड़ा में कई ऐसे पत्र और ग्रंथ संग्रहित हैं, जो मोड़ी लिपि में हैं। इनका अनुवाद कराया जाना चाहिए।
ताई ने उठाया मामला
इसके बाद मुख्यमंत्री ने मोड़ी लिपि में लिखे ग्रंथों का अनुवाद कराने की बात कही। मुख्यमंत्री डाॅ. यादव ने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के रणनीति और प्रबंधन का अंदाजा लगाना मुश्किल है। देवी अहिल्या ने केवल इंदौर एवं महेश्वर हीं नहीं, बल्कि पूरे देश में धर्म स्थापना का कार्य किया। रामेश्वरम से कांवर से जल लाकर काशी विश्वनाथ पर जलाभिषेक करने की परंपरा देवी अहिल्या ने शुरू की थी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि होलकरों का वर्चस्व केवल मालवा या मराठा में ही नहीं था, बल्कि दिल्ली में जहां आज राष्ट्रपति भवन, मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय बना है, वहां भी था। आज देश के सबसे संवेदनशील व सुरक्षित क्षेत्र अर्थात रायसीना हिल को जीतकर यहां होलकरों ने भगवा झंडा फहराया था।
क्या है मोड़ी लिपि
माना जाता है कि सन् 1600 से 1950 तक मोड़ी ही मराठी की प्रचलित लिपि रही। मध्य-पश्चिम भारत में राजस्थान से महाराष्ट्र तक इसका प्रयोग हर क्षेत्र में होता था। मराठा साम्राज्य का बहुत सा पत्र-व्यवहार इस लिपि में है। ‘मोड़ी’ शब्द का अर्थ ‘तोड़ना’ या ‘मोड़ना’ होता है। मोड़ी लिपि का मुद्रण देवनागरी लिपि की तुलना में अधिक जटिल है, इसलिए इसका प्रयोग 1950 में आधिकारिक रूप से बंद कर दिया गया।