भीषण गर्मी में 4 से 6 डिग्री तापमान कम कर रहे पेड़-पौधे
समय रहते इस पर ध्यान न दिया तो हमारा मालवा भी रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा
दैनिक अवन्तिका उज्जैन (राहुल शुक्ल)
नवतपे की तपिश से परेशान बहुत सारे शहरवासियों का दर्द यह है कि कई कई घंटों विद्युत आपूर्ति न होने से पंखे, कूलर व एअरकंडिशनर का सहारा भी नहीं मिल पा रहा और ऐसे में समय कैसे काटा जाए। किन्तु हम विकास व ऐशोआराम की दुनिया में इतने रम गए कि ईश्वर प्रदत्त वरदान पेड़-पौधों की उपयोगिता को भूल बैठे।
असहनीय तपिश से राहत दिलाने मे वृक्ष कितने सहायक हैं इसे आप स्वयं महसूस कर सकते हैं जब आप इनके करीब जाकर तापमान नोट करें।
शहर की विवेकानंद बंगाली कॉलोनी के रहवासी अमिताभ सुधांशु को विद्युत आपूर्ति ठप्प होने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उनके घर के आसपास नेचुरल कूलिंग सिस्टम जो है। अमिताभ ने अपने घर के बाहर सभी तरह के पौधे लगा रखे हैं जिनमें से कुछ आज विशाल वृक्ष बन अपनी छांव से कूलिंग दे रहे हैं। इनके बगीचे मे आपको छोटे, मध्यम व बड़े सभी आकार के पेड़ नजर आएंगे। विशाल अशोक व चीकू के पेड़ों की शीतल छांव तो जामफल, सीताफल, मीठे नीम भी ठंडक में अपनी सुगंध घोलते हैं। एक कोने में छोटी झाड़ीनुमा पौधे जैसे काजू, सफेद व लाल चंदन, अंगूर की लता आदि को लगाकर मियावाकी पद्धति से जंगल जैसा तैयार किया जा रहा है। इस बगीचे मे पहुंचने पर शीतलता का एहसास तो होता ही है साथ ही हरियाली को देख मन प्रफुल्लित भी होता है।
ठंडक का जादू
आज दैनिक अवन्तिका के प्रतिनिधि ने स्वयं वृक्षों का जादू देखा। दोपहर साढे तीन बजे जब पेड़ो से दूर खुले में तापमान 41.8 डिग्री सेन्टीग्रेड था उसी दरमियान अमिताभ सुधांशु के घर के पास तापमान 36.2 डिग्री सेन्टीग्रेड था यानि बाहर और बगीचे के तापमान मे 5.6 डिग्री सेन्टीग्रेड का अंतर। साढ़े पांच डिग्री तापमान कम होने से काफी राहत होती है। वृक्षों के इसी जादू को समझने की आज जरूरत है। विकास की अंधी दौड़ में हम प्रकृति प्रदत्त अनुपम उपहारों को नजरअंदाज करते जा रहे हैं जो एक बड़ी भूल है। समय रहते इस पर ध्यान न दिया तो हमारा मालवा भी रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा और शबे मालवा वाली बात सिर्फ इतिहास में दफन हो जाएगी।
लाइट जाने पर फर्क नहीं पड़ता
पेड़-पौधे की परवरिश थोडेÞ समय करते रहने से ये हमे ऐसा अनमोल उपहार देते हैं जिसकी मैंने स्वयं कल्पना नहीं की थी बस मुझे शौक रहा बागवानी का किन्तु आज लाइट जाने पर जब पंखे, कूलर बंद हो जाते हैं तो मैं परेशान नहीं होता और बगिया में बैठ जाता हूं।
अमिताभ सुधांशु, विवेकानंद कॉलोनी