उपलब्धि नहीं मिली तो त्यौहार पर भी नहीं पहुंचे
दैनिक अवंतिका(खुसूर-फुसूर) सोमवार को धर्म विशेष का पर्व था। त्याग और बलिदान के इस पर्व को लेकर पूर्व के वर्षों में इन्हें अपना समझने वाले दल के लोगों ने इस बार इन्हें पूरी तरह से ही अकेला छोड दिया। हाल यह था कि दल के दल से बाहर निकले मात्र एक नेता ही पूर्ववर्ती वर्षों की तरह धर्म विशेष के पीछे के अपने स्थान पर खडे थे और उन्होंने ही धर्म विशेष के अनुयायियों का स्वागत किया । दल के न तो शहर के प्रमुख इस दौरान साथ थे और न ही अन्य कोइ छोटे बडे नेता ही स्वागत के लिए वहां पहुंचे थे। राजनीति में उपर नीचे के हाल चलते रहते हैं इसी लिए भारत निर्वाचन आयोग ने मतदान को गोपनीय रखा है। इससे परे धर्म विशेष के अनुयायियों को एक पुरातन राजनैतिक दल का ही माना जाता है। यह बात अलग है कि पिछले कुछ वर्षों में हालात बदले हैं। यह पहला अवसर देखा गया जब धर्म विशेष के त्यौहार पर उसके अनुयायियों के स्वागत के लिए पुरातन दल के जिम्मेदार लोग ही स्वागत में नजर ही नहीं आए। खुसूर-फुसूर है कि पुरातन दल के जिम्मेदारों में मुखिया को कोई काम और उलझन के तहत वे नहीं आ पाए हों तो बाकी के शेष भी उलझन में ही नहीं आए आखिर ऐसी कौन सी उलझन एवं व्यस्तताएं आ गई थी। पूर्व सांसद के यहां शोक में जाने के समय से पूर्व ही यहां का कार्यक्रम निपट गया था ऐसे में यह अनुपस्थिति खुसूर-फुसूर में जमकर चल रही है। एक मात्र नेता ही ऐसे थे जो स्थल पर पूर्व से पहुंचे थे और उन्होने ही अनुयायियों का पूर्ववर्ती वर्षों के अपने दल के स्थल से ही स्वागत किया। पूर्व पार्षद रहे नेता जी नई सडक वाले अध्यक्ष जी के शिष्य रहे हैं और छत्री चौक की बैठक के रहे हैं। अनुयायियों में उनके लिए जमकर सराहना की स्थिति बनी है।