खुसूर-फुसूर तीन चरण और “वन” की उपेक्षा

दैनिक अवंतिका उज्जैन खुसूर-फुसूरतीन चरण और “वन” की उपेक्षाविश्व प्रसिद्ध मंदिर क्षेत्र के उत्थान और विकास का काम पिछले कई वर्षों से जारी है। इसमें बराबर हरे भरे पौधों की संख्या कम की गई । योजना के प्रथम एवं द्वितीय चरण में अब तक अरबों रूपया खर्च किया गया है। शुरूआत में यह योजना “वन” के रूप में ही अपनी पहचान बना सकी थी। योजना ने आकार लेना शुरू किया तो इसमे से पूरी तरह से “वन” ही गायब हो गया। यहां तक की योजनाकारों ने  भी “वन” से दूरी बनाकर रखी। जो कुछ था उसे भी विहीन कर दिया गया। जहां था जैसी स्थिति में था उसे संजोने सहेजने की बजाय निकाल बाहर किया गया। नए की तो बात ही नहीं की जा सकती है। पुराणों में जिस का जिक्र “वन” के रूप में आया उसे उससे ही विहिन कर दिया गया। इस विकास के लिए बराबर जमीन बढती रही और “वन” गायब होता रहा। वास्तविक की जगह पर बनावटी को जरूर महत्व मिला। समय समय पर बनावटी “वन”  लगाकर लुभाया गया और अंधेरे में रखा गया। अब जब तीसरा चरण चालू होगा तब के लिए योजना बनाने की बात कही जा रही है यही नहीं अभी भी जमीन को लेकर टंटा है। जो था और जिसमें “वन” को संजोया जा सकता था उसे दरकिनार करते हुए वो किया गया जिसमे “वन” का नामोनिशान ही नहीं रहा। खुसूर –फुसूर है कि पूर्व से ही इस क्षेत्र में काफी हरी भरी स्थिति रही है लेकिन धीरे –धीरे सब गायब होता रहा है रूद्र सागर के पास और अखंड आश्रम क्षेत्र में मल्टी वाले भाग में विकास कार्यों के दौरान “वन” काटे गए और सीमेंट कांक्रीट का जाल बिछाने में देर नहीं की गई। ऐसी एक भी योजना को अमल में नहीं लाया गया जिससे की क्षेत्र हरा भरा भी रहे और विकास का काम भी हो। नृसिंह घाट क्षेत्र में भी अब “वन” घट रहे हैं। तीसरे चरण में भी अब तक विकास के सीमेंट कांक्रीट के जाल की ही योजना सामने आ रही है उसमें से भी “वन” की स्थिति कमजोर बताई जा रही है। “वन” को लेकर सजग होने का समय आ गया है।