उज्जैन में पर्यावरण संतुलन के लिए पेड लगाने की सख्त आवश्यकता प्रतिदिन 15 हजार से अधिक वाहनों का प्रदुषण बढा -शहर के स्थानीय लोगों के साथ ही प्रतिदिन 1.50 लाख श्रद्धालुओं के आवागमन की स्थिति
दैनिक अवंतिका उज्जैन उज्जैन। शहर में पर्यावरण संतुलन की स्थिति को बनाने के लिए पेड लगाने की सख्त आवश्यकता सामने आ गई है। श्री महाकाल महालोक बनने के बाद प्रतिदिन शहर में 15 हजार से अधिक वाहनों का प्रदुषण बढा है तो स्थानीय लोगों के साथ ही प्रतिदिन 1.50 लाख श्रद्धालुओं के अतिरिक्त आवागमन की स्थिति भी बनी है। इसे देखते हुए शहर और आसपास के क्षेत्र में जमकर पौधारोपण किया जाना आवश्यक हो गया है।उज्जैन में गर्मी ने इस वर्ष अपने चरम को छुआ है। पूर्व में मालवा का यह क्षेत्र न बहुत ज्यादा गर्मी, न ठंड और न ही बरसात से प्रभावित रहता है। सभी अवस्थाओं में यह क्षेत्र सामान्य के लगभग ही रहता है।निरंतर रूप से विकास कार्यों को लेकर यहां वृक्षों की कटाई का काम किया गया है। अगर बात इंदौर रोड के फोर लेन करने की ही की जाए तो इस मार्ग को बनाते समय करीब 2700 से अधिक पेड काटे गए थे। ठेका कंपनी से मध्यप्रदेश सडक विकास निगम ने अनुबंध के तहत 10 हजार पेड लगाने का करार किया था। इसके एवज में ठेका कंपनी ने मात्र डिवाईडर के बीच कनेर एवं अन्य झाडियां लगाकर काम चला दिया है।बडा हर प्रकार का प्रदुषण-दो वर्ष पूर्व शहर को धार्मिक,सामाजिक के साथ आर्थिक पर्यटन की गति देने के लिए श्री महाकाल महालोक का निर्माण किया गया। इसके प्रथम चरण का लोकार्पण प्रधानमंत्री ने किया। प्रथम चरण में पर्यावरण संतुलन को लेकर कोई योजना नहीं रखी गई। पूरे क्षेत्र में सीमेंट का जंजाल खडा कर दिया गया। यहां तक की महाकाल वन कहे जाने वाले क्षेत्र में वन पुरी तरह से ही गायब हो गया। श्री महाकाल महालोक के बन जाने के बाद देश भर के श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों का यहां जमघट लग रहा है। प्रतिदिन औसत 1.50 लाख श्रद्धालुओं का आगमन हो रहा है। इसके चलते हर प्रकार का प्रदुषण भी बढा है।तीसरे चरण में पर्यावरण के लिए जगह-सामने आ रहा है कि श्री महाकाल महालोक के प्रथम एवं द्वितीय चरण में पेड पौधों को लेकर नाम मात्र की ही जगह रखी गई और वह भी सीमेंटीकरण से पूरी तरह से लिप्त कर दी गई है। रूद्र सागर के आसपास भी पत्थर एवं दिवार से पिचिंग कर दी गई है। बीच के स्थान पर ही गिनती के वृक्ष की स्थिति है। इसके अलावा अब तक श्री महाकाल महालोक के दो चरणों में पर्यावरण एवं पेड पौधों को लेकर कहीं प्राथमिकता नहीं दी गई है। जबकि यह पूरा क्षेत्र स्कंद पुराण के अवंति खंड में महाकाल वन के नाम से उल्लेखित है। दो चरणों के निर्माण के उपरांत अब जाकर श्री महाकाल महालोक के तीसरे चरण में वन एवं पर्यावरण को स्थान देने की जानकारी सामने आ रही है लेकिन अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि यह वन क्षेत्र कहां होगा और कितना होगा। वाहनों एवं इतनी संख्या से प्रभावित होता है वातावरण-शहर में प्रतिदिन आ रहे करीब 20-25 हजार वाहनों एवं औसत 1.50 लाख श्रद्धालुओं से शहर का पर्यावरण प्रभावित होगा ही इसे पर्यावरण विद् भी मानते हैं। अगर उनकी माने तो इससे धीरे –धीरे शहर के वातावरण प्रभावित होगा और पर्यावरण असंतुलन की स्थिति बनने लगती है। इसमे गर्मी अधिक होना,क्षेत्र विशेष में ठंड अधिक होना या बारिश अधिक होना न होना जैसे असंतुलित स्थिति बनने लगती है।रूद्र सागर के किनारे हो सकता था पौधरोपण-श्री महाकाल महालोक में रूद्र सागर का विकास की योजना काफी वृह्द रही है। इस योजना के लिए पंपिंग स्टेशन और पानी की दोनों और लाईन बिछाई गई है। जिससे की रूद्रसागर को खाली करने और भरने में कोई दिक्कत न आए। इसके साथ ही इसके सौंदर्यकरण पर भी काफी खर्च किया गया है।रूद्रसागर के विकास के समय पर्यावरण को प्राथमिकता से रखकर योजना को मूर्तरूप दिया जाता तो इस क्षेत्र में हरियाली देखते ही बनती। सागर के चारों और यहां बेहतर वृक्षारोपण कर उसे समृद्ध किया जा सकता था। इससे पास ही में निर्मित महाकाल महालोक कारिडोर में आने वाले श्रद्धालुओं को भी पूरे समय शुद्ध हवा मिलती और यहां का वातावरण भी शुद्ध होता।-निश्चित तौर पर इतने वाहनों एवं मानव के आवागमन से पर्यावरण प्रभावित होता है। तीसरे चरण में हमें प्लांटेशन करना है। राजस्व विभाग जैसे ही हमें जमीन देगा हम उस पर योजना को मूर्तरूप देंगे। इस वर्ष हम शिप्रा किनारे पौधारोपण करने वाले हैं किनारे की जमीन हमें राजस्व विभाग हेंड औवर करेगा इसके बाद ही पौधरोपण किया जा सकेगा। डा.किरण बिसेन,वनमंडलाधिकारी, उज्जैन