श्रद्धालू ढूंढते हैं छांव,नाम मात्र की हरियाली
-श्री महाकाल एवं महालोक के आसपास छांव की दरकार
उज्जैन। गर्मी की इस तपन में इंसान ही नहीं जानवर भी छांव की दरकार लिए हुए रहता है। दोपहर के समय में हरे भरे वृक्षों की छांव में आसरा मिल जाए तो मानों कुल्लू मनाली का मजा मिल गया। देश भर से आने वाले श्रद्धालू महाकाल और आसपास के क्षेत्र में इस छांव को ढूंढते रहते हैं और उन्हें इसका आसरा बमुश्किल ही मिल पाता है।
श्री महाकाल क्षेत्र में धीरे –धीरे चल रहे विकास कार्यों में वृक्षों की संख्या निम्नस्तर पर जा पहुंची है। कभी मंदिर के परिसर में ही आधा दर्जन से अधिक वृक्ष गर्मी के दिनों में श्रद्धालुओं को काले पत्थर पर पांव की जलन से राहत देते थे और वृक्षों के नीचे बेहतर छांव मिलती थी अब ऐसे वृक्ष नगण्य स्थिति में हैं। मंदिर में पहली टनल बनाते समय एक वृक्ष ने अपनी जडें छोड दी थी और दुर्घटना की हुई थी। इसके बाद के विकास कार्यों में मंदिर परिसर में वृक्षों की स्थिति नगण्य हो गई है। इसके साथ ही विस्तारित परिसर में भी यही हाल हो गए है।
छांव वाले पेडों के स्थान पर झाडियां-
मंदिर परिसर का विस्तार पिछले कई सालों से जारी है। पहले चरण में श्री महालोक बनाया गया है। इस दौरान 900 मीटर के कोरिडोर में हरिफाटक ब्रिज से लेकर मंदिर तक बीच में आए कई वृक्ष हटा दिए गए । उनके स्थान पर महालोक में सौंदर्य के लिए फूलों की झाडियों को क्यारी बना कर स्थान दिया गया। अब स्थिति यह है कि आधी क्यारियों में पौधों की संख्या घट गई है। बडे पेड नाम मात्र को ही हैं जो हैं उनकी छांव पर्याप्त नहीं है। महालोक अधिकांश ही खुले आसमान के नीचे है ऐसे में गर्मी के दिनो में दोपहर के समय महालोक में आने वाले श्रद्धालुओं को दो पल की छांव भी नसीब नहीं हो सकी। कोरिडोर पार करने के बाद ही काम्पलेक्स में ही उन्हें थोडी बहुत जगह मिली हो तो ठीक।
कोरिडोर इधर –उद्यान उधर-
महालोक का 900 मीटर का दायरा पार करने के बाद बडा गणपति की सडक पार के दुसरे हिस्से में उद्यान को आकार दिया गया है। यह भी एक अजीब ही नजारा है। महालोक में श्रद्धालू पूरी धूप और गर्मी सहनकर पसीना बहाने के बाद इस उद्यान में पहुंचते हैं। उद्यान में भी वृक्ष नाम मात्र को हैं। यहां भी पौधे और झाडियों को ज्यादा महत्व दिया गया है। पौधे भी ऐसे हैं जो भविष्य में कभी छांव देंगे या नहीं यह तय नहीं है। विकास के इस दृष्टिकोण को देखकर बाहर से आने वाले बुद्धिजीवी विचार में पड जाते हैं।
नहीं छांव के पर्याप्त प्रबंध-
मंदिर एवं उसके विस्तारित क्षेत्र में छांव के पर्याप्त प्रबंध नहीं हैं। मंदिर समिति की और से शामियाने लगवाए जाते हैं लेकिन उसकी सीमा भी निम्न ही देखी जाती है। कोरिडोर में ही सर्वाधित श्रद्धालू धूप में तपते देखे जाते हैं।