शिव के राज में कैलाश चुप थे, तो मोहन सरकार में शंकर गुमसुम हुए, इंदौर की राजनीति में हुआ काफी बदलाव , प्रदेश नेतृत्व में भी आगे दिखेंगे परिवर्तन

इंदौर। प्रदेश सरकार ने अभी प्रभारी मंत्रियों का ऐलान नहीं किया है लेकिन शासकीय कार्यक्रमों के लिए मंत्रियों को जिले आवंटित कर दिए हैं। इंदौर जिले के कार्यक्रम जैसे 15 अगस्त का झंडा वंदन इत्यादि नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय करेंगे।
इसी तरह जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट को देवास जिला आवंटित किया है। जाहिर है मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने इंदौर जिला प्रशासन को साफ संकेत दिए हैं कि जिले में प्रशासन अब कैलाश विजयवर्गीय के इशारे से चलेगा। कैलाश विजयवर्गीय 2003 से 2018 तक लगातार कैबिनेट मंत्री रहे हैं। उमा भारती के शासन में भी उनकी जिले में ऐसी ही हैसियत थी, लेकिन तब स्वर्गीय लखन दादा भी कैबिनेट मंत्री थे इसलिए जिला प्रशासन के समक्ष उलझन रहती थी।

 

बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान के राज में कैबिनेट मंत्री रहते हुए भी कैलाश विजयवर्गीय की जिला प्रशासन में इतनी नहीं चलती थी। जिला प्रभारी मंत्री रहे राघव जी भाई, जयंत मलैया, भूपेंद्र सिंह, डॉ नरोत्तम मिश्रा जैसे मंत्री कभी श्री विजयवर्गीय की सुनते थे कभी नहीं, लेकिन मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के राज में कैलाश विजयवर्गीय का ही सिक्का जिला प्रशासन पर चलता है। यूं कैलाश विजयवर्गीय इंदौर जिले के सबसे लोकप्रिय नेता पिछले तीन दशकों से हैं, कार्यकर्ताओं की जो फौज उनके पास रही है वैसी किसी अन्य भाजपा नेता के पास इंदौर जिले में कभी नहीं रही, इसके बावजूद उनकी अपनी ही पार्टी में उपेक्षा होती रही।

 

एक समय तो ऐसा भी आया जब उन्होंने खुद को शोले का ठाकुर कहना शुरू कर दिया था जिनके हाथ नहीं थे। एक समय इंदौर जिले के प्रशासन में उन नेताओं की तूती बोलती थी जिन पर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान या नरेंद्र सिंह तोमर का हाथ हो। अधिकारीगण भी सीधे मुख्यमंत्री से निर्देश लेते थे, लेकिन अब स्थिति बदल गई है।
मुख्यमंत्री के इस निर्णय से इंदौर को ही लाभ मिलने वाला है क्योंकि इंदौर की सारी समस्याओं के बारे में जितनी बारीकी से कैलाश विजयवर्गीय जानते हैं। उतना अन्य कोई नेता नहीं। यही वजह है कि मेट्रो प्रोजेक्ट के मामले में कैलाश विजयवर्गीय ने जो निर्णय लिया उसकी आम जनता ने प्रशंसा की है।

 

प्रदेश में जब से सत्ता परिवर्तन हुआ है सांसद शंकर लालवानी की मुखरता – एकदम कम हो गई है। वो अधिकांश समय खामोश रहने की कोशिश करते हैं। कई बार मंच पर भी उनको गुमसुम देखा गया है। खास तौर से 29 अप्रैल को हुए घटनाक्रम के बाद ऐसा लगता है शंकर लालवानी अपनी खामोशी के जरिए नाराजगी व्यक्त करना चाहते हों।
अक्षय कांति बम के घटनाक्रम पर उनका आज तक कोई बयान नहीं आया है।
उन्होंने इस मामले में कभी कुछ नहीं कहा। न कांग्रेस पर प्रहार किया और न ही भाजपा का बचाव किया। अक्षय कांति बम से उन्होंने चुनाव के दौरान भी अलग से मिलने की कोशिश नहीं की।
खास तौर पर उस मंच पर उनकी खामोशी और बेचैनी साफ देखी जा सकती है जिस मंच पर कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय बैठे हों। दरअसल, शिवराज सिंह चौहान के भरोसे राजनीति करने वाले शंकर लालवानी डॉ मोहन यादव के मुख्यमंत्री और कैलाश विजयवर्गीय के कैबिनेट मंत्री बनने के बाद बिल्कुल भी लय में नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि खामोशी उनकी तासीर हो।

 

उन्हें रमेश मेंदोला या कृष्ण मुरारी मोघे की तरह कम बोलने वाला नेता नहीं माना जाता है। एक समय तो वो काफी वाचाल थे, लेकिन बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में ऐसा लगता है कि उनकी बोलती बंद हो गई है। हालांकि जन समस्याओं के मामले में उनकी सक्रियता में कमी नहीं आई है। ना हीं उनका जनता से व्यवहार बदला है, लेकिन ऐसा लगता है कि कहीं ना कहीं वो इंदौर भाजपा की फंक्शनिंग से खुश नहीं हैं।
जहिर है कभी ना कभी उनकी खामोशी किसी दिन राजनीतिक विस्फोट को जन्म देगी ? वैसे शिवराज सिंह चौहान को जिस तरह से राष्ट्रीय राजनीति में महत्व दिया जा रहा है, उसके बाद यह तय है कि शंकर लालवानी एक बार फिर अपनी पुरानी लय में जल्दी ही दिखेंगे।

Author: Dainik Awantika