बेसहारा बच्चों के लालन पालन में लगी संस्थाओं को अनुदान ही नहीं मिल रहा, आर्थिक संकट में फंसी संस्थाएं
पत्थर की तरह कठोर बने बैठे है महिला बाल विकास के आला अधिकारी
‘मिशन वात्सल्य योजना’ के तहत बजट मिलता है
उज्जैन। उज्जैन में भी ऐसी कई संस्थाएं है जो बेसहारा, अनाथ और परित्यक्त बच्चों का लालन पालन करने में कभी पीछे नहीं रही है लेकिन बताया गया है कि महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा ऐसी संस्थाओं को बीते साल भर से अनुदान ही नहीं दिया गया है
और ऐसे में अधिकतर संस्थाएं आर्थिक संकट में फंसी हुई है। यह स्थिति उज्जैन की ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की है। हालांकि इन संस्थाओं में मिशनरीज संस्थाएं शामिल नहीं है। विभाग के अनुदान के भरोसे चलने वाली संस्थाओं ने कई बार विभाग के आला अफसरों को पत्र भी लिखे है लेकिन बावजूद इसके आला अधिकारी पत्थर की तरह कठोर बने हुए बैठे है।
और ऐसे में अधिकतर संस्थाएं आर्थिक संकट में फंसी हुई है। यह स्थिति उज्जैन की ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की है। हालांकि इन संस्थाओं में मिशनरीज संस्थाएं शामिल नहीं है। विभाग के अनुदान के भरोसे चलने वाली संस्थाओं ने कई बार विभाग के आला अफसरों को पत्र भी लिखे है लेकिन बावजूद इसके आला अधिकारी पत्थर की तरह कठोर बने हुए बैठे है।
उल्लेखनीय है कि महिला बाल विकास के अधीन मप्र में 67 बाल देखरेख संस्थाएं संचालित हैं जिनमें करीब डेढ़ हजार ऐसे बच्चे निवासरत हैं, जिनके परिवार में कोई नहीं है या जो किशोर न्याय अधिनियम की परिभाषा में सीएनसीपी श्रेणी में आते हैं। संस्थाओं को इस साल का अनुदान जारी नहीं किया गया है जबकि वित्तीय बर्ष 2023-24 को समाप्त हुई लगभग तीन महीने हो रहे हैं। प्रदेश में 44 बाल गृह,26 शिशु गृह एवं 17 खुला आश्रय गृह संचालित हैं। विभाग ने आचार संहिता में 7 नवीन संस्थाओं को भी मंजूरी दी है।
‘मिशन वात्सल्य योजना’ के तहत बजट मिलता है
केंद्र की ‘मिशन वात्सल्य योजना’ के तहत जिन संस्थाओं को बजट मिलता है, उन्हें केंद्र सरकार द्वारा 60 फीसदी एवं राज्य सरकार 40 फीसदी अंशदान दिया जाता है। इस संबंध में मध्य प्रदेश के कोटे का बजट मार्च के अंतिम सप्ताह में ही केंद्र सरकार ने जारी कर दिया गया, लेकिन महिला बाल विकास के अफसर तीन महीने से बजट को लटकाए हुए हैं। कभी लोकसभा चुनाव के नाम पर तो कभी कलेक्टरों से अनुशंसा के नाम पर इन संस्थाओं का बजट रोका गया। मिशनरी संस्थाओं द्वारा भी बाल गृह चलाये जाते हैं। इन संस्थाओं को एफसीआरए के अलावा मिशनरीज औऱ यूनिसेफ जैसे संस्थाओं से बड़ी राशि चंदे के रूप में मिलती है, इसलिए इन संस्थाओं को आर्थिक रूप से कोई दिक्कत नहीं आती और यह सरकारी सहायता या योजना अनुरूप आर्थिक राशि समय पर नहीं मिलने के बाद भी अपनी संस्थाओं को चलाने में इन्हें कोई अर्थ के नजरिए से कोई दिक्कत नहीं आती, इसके साथ ही इनके हिडन एजेंडे में कन्वर्जन भी शामिल रहता है, जिसके चलते इन्हें मोटी रकम समय-समय पर दान के रूप में मिलती रहती है, लेकिन छोटी संस्थाओं के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। यही कारण है कि बालकों के पक्ष में सेवा कर रही छोटी संस्थाएं कहीं न कहीं शासकीय राशि पर निर्भर करती है, जब यह राशि लम्बे समय तक रोक दी जाती है, तब स्थिति यहां तक पहुंच जाती है कि इन्हें अपने सहयोगियों को समय पर वेतन देना भी मुश्किल हो जाता है। अभी ऐसी संस्थाएं अपने यहां साल भर से स्टाफ को पूरा वेतन भी नहीं दे पा रही हैं। वहीं, इन्हें बच्चों के लिए मानक सुविधाएं उपलब्ध कराने में भी अड़चन आ रही है। कुछ संस्थाओं के पास राशन, बिजली, पानी के बिल अदा करने के हालात भी नहीं है।
यह है योजना
केन्द्र प्रायोजित योजना मिशन वात्सल्य यानी बाल संरक्षण सेवा योजना शुरू की है। मिशन वात्सल्य का लक्ष्य भारत के हर बच्चे के लिए एक स्वस्थ एवं खुशहाल बचपन सुनिश्चित करना, उन्हें अपनी पूर्ण क्षमता का पता लगाने के लिए अवसर प्रदान करना, हर क्षेत्र में विकास के लिए सहायता प्रदान करना, उनके लिए ऐसी संवेदनशील, समर्थनकारी और समकालिक इको-व्यवस्था स्थापित करना है जिसमें उनका पूर्ण विकास हो। इसके साथ ही राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को किशोर न्याय कानून 2015 के अनुरूप सुविधाएं मुहैया कराने तथा सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करना था। मिशन वात्सल्य अंतिम उपाय के रूप में बच्चों के संस्थागतकरण के सिद्धांत के आधार पर कठिन परिस्थितियों में बच्चों की परिवार-आधारित गैर-संस्थागत देखभाल को बढ़ावा देता है।