गंभीर डेम जब बना होगा, तब संभवत: उज्जैन को पानी देने के लिए पर्याप्त रहा होगा। उस समय की आबादी और आज की आबादी में जमीन-आसमान का अंतर है।
दैनिक अवंतिका उज्जैन।¸
गंभीर डेम जब बना होगा, तब संभवत: उज्जैन को पानी देने के लिए पर्याप्त रहा होगा। उस समय की आबादी और आज की आबादी में जमीन-आसमान का अंतर है। अनुमानत: 30-35 वर्षों से गंभीर डेम उज्जैन को पानी पिला रहा है। पानी का एक नियम होता है कि वह अपने साथ मिट्टी लेकर चलता है। स्थिर पानी होने के बाद उसमें काई पड़ती है और वह काई नीचे जम जाती है। अतः उसके तल में भराव हो जाता है। एक तरफ गंभीर की गहराई कम होना और दूसरी तरफ उज्जैन की आबादी का दिन दूना और रात चौगुना बढ़ना, ऊपर से आबादी के हिसाब से पानी की आपूर्ति, यह सब शहर के लिए एक चुनौती बने हुए हैं। पुराने लोगों को ध्यान होगा कि शहर में दोनों समय एक-एक घंटे नल से पानी आता था। धीरे-धीरे पानी एक समय हो गया। अब यह स्थिति बनी है कि अप्रैल शुरू होते से ही पानी एक दिन छोड़कर आने लगता है । 2007- 08 की स्थिति को याद करें तो याद होगा कि तीसरे दिन पानी आता था। एक समय ऐसी भी स्थिति आई थी कि हमको नागदा से पानी लेकर लाना पड़ा था। इतना सब होने के बावजूद उज्जैन नगर निगम और पीएचई विभाग ने कभी इस पर गंभीरता से विचार किया ही नहीं। जब बरसात होती है तब यही दोनों बड़े गर्व से कहते हैं कि हमारे पास इतना पानी हो गया है कि अगर 02 साल भी पानी न गिरे तो हमें कोई चिंता नहीं है। जनप्रतिनिधि भी उनकी हां में हां मिलने में पीछे नहीं रहते। यही लोग मात्र 08 महीने बाद यह कहना शुरू कर देते हैं कि गंभीर में पानी बहुत तेजी से घट रहा है। सवाल यह है कि यह कब तक खुद को और जनता को भ्रमित करते रहेंगे। समीप में ही साहब खेड़ी तालाब है, जो कि बहुत बड़ा है। उसकी पैमाइश की जाए तो संभवत: वह कई किलोमीटर में फैला हुआ है। क्या नगर निगम, पीएचई और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने कभी इस पर विचार किया कि साहेबखेड़ी परियोजना को इस प्रकार विकसित किया जाए कि वह संकट के समय उज्जैन को पानी दे सके। आज के 30-35 साल पहले यदि उज्जैन की आबादी चार लाख थी, तो आज 15 लाख हो गई है। चार लाख के लिए बना गंभीर डेम 15 लाख को पानी कैसे दे सकता है, यह एक विचारणीय प्रश्न है। ऊपर से यह भी एक विचारणीय प्रश्न है कि हमारे अधिकारी और जनप्रतिनिधि पद पर बैठने के बाद शायद ही कभी यह विचार करते हैं कि हमें शहर के लिए कुछ ऐसा काम करना है, जो मील का पत्थर साबित हो। ऐसा लगता है कि वे पद पर बैठ तो जाते हैं पर बार-बार अपनी कुर्सी, अपना परिवार और अपने इष्ट मित्रों को ही संभालते रहते हैं। जनता तो मात्र वोटर बनकर रह जाती है।
जनता का प्रश्न है कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि शहर के प्रत्येक वर्ग के एक-एक प्रतिनिधि को बुलाकर जल समस्या पर एक बैठक आयोजित की जाए, ताकि उसमें से कोई न कोई हल निकलकर आए। शासन प्रशासन कब तक जनता को मूर्ख समझता रहेगा? हमारे अधिकारी सुबह से शाम तक फाइलों में उलझे रहते हैं अथवा बैठकें करते-करते खुद बैठ जाते हैं। जनप्रतिनिधियों को दौरों से फुर्सत नहीं मिलती। आज इधर तो कल उधर। अरे भाई! जिस जनता ने आपको चुना है, एक बार उससे भी कुछ पूछ लो कि उसे क्या चाहिए या शहर की कोई समस्या है तो जनता से पूछ कर उसका हल निकालने में क्या तकलीफ है? सरकार किसी की भी हो, जनता को मूर्ख समझना अपना परम कर्तव्य समझती है। अभी भी समय है कि हम साहब खेड़ी परियोजना को विकसित करें, उस तालाब का सीमांकन करें और इस प्रकार से व्यवस्था दें ताकि उसका पानी चोरी न हो और शहर में जब भी आवश्यकता हो, वह जलापूर्ति के काम आए।
डा. स्वामीनाथ पाण्डेय.