बजट में दिख रही नए एवं स्वर्णिम मप्र की झलक

 

इंदौर। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बुधवार को बजट पेश हो गया, क्योंकि कोई भी नया कर नहीं लगाया गया। इसलिए यह मनमोहन या मनभावन बजट कहा जा रहा है। बजट जब भी आता है तो उद्योग, व्यापारी वर्ग सहित आम आदमी भी इस चिंता में पड़ जाता है कि न जाने किस वस्तु पर टैक्स ज्यादा होगा और उसका असर उनके जीवन पर पड़ेगा। फिलहाल बजट पुराने करों के हिसाब से ही है। यह भी एक तथ्य है कि मध्य प्रदेश सरकार पहले ही हजारों करोड़ रुपए के कर्ज में है। इसके बावजूद नया कर नहीं लगना आर्थिक विशेषज्ञ द्वारा एक साहसिक कदम माना जा रहा है। उज्जैन में वर्ष 2028 में सिंहस्थ का मेला भराएगा। इस महापर्व के लिए अभी से की जा रही तैयारी प्रशंसनीय है। शिक्षा, स्वास्थ्य तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं पर भी मोहन यादव सरकार का फोकस बजट में नजर आता है। फिर भी सुधार और विकास की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। यहां प्रस्तुत है कुछ विशिष्ट जनों की बजट पर प्रतिक्रिया-

17 हज़ार नौकरियाँ, इंफ्रास्ट्रक्चर में ज़्यादा ज़ोर, रोज़गार पर बजट 3014 हज़ार करोड़ से 4191 करोड़ किया जाना निश्चित रूप से स्वागत योग्य है। सभी सेक्टर को सब कुछ दिया गया है । इसके बावजूद नया कर नहीं बढ़ाया गया। कुल मिलाकर बैलेंस्ड बजट है जो कि नये एवं स्वर्णिम मध्यप्रदेश की झलक दिखा रहा है।-
सीए डॉ अभय शर्मा
मानद सचिव
टैक्स प्रैक्टीशनर्स एसोसिएशन,
इंदौर

इस बजट में प्रदेश को सड़क के जरिए देश-विदेश से जोड़ने के लिए प्रावधान किए गए हैं… निश्चित रूप से विकास सड़क के साथ आगे बढ़ता है, इसलिए यह स्वागत योग्य है। यदि बारिश के पानी की निकासी के लिए ड्रेनेज सिस्टम पर भी ध्यान दिया जाता तो और बेहतर होता।
– प्रभाकांत कटारे, रिटायर्ड चीफ इंजीनियर, नगरीय प्रशासन विभाग

बजट में प्रत्येक वर्ग का ध्यान रखा गया है। खासकर शहरों के सुनियोजित विकास और ऊर्जा विभाग के लिए किए गए प्रावधान भी अच्छे हैं। इससे राज्य में ऊर्जा की समुचित पूर्ति हो सकेगी।
— अंशुल अग्रवाल, सीए

बजट में बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर फोकस किया गया है। यह ठीक है, लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह राशि अपर्याप्त ही कहलाएगी। मेडिकल कॉलेज भी अपर्याप्त हैं। आज भी ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी एक बड़ी समस्या के रूप में है। 40,000 नए पदों के सृजन का प्रावधान तो किया गया है, परंतु पैरामेडिकल स्टाफ की कमी को देखते हुए यह भी कम है।
– डॉ शरद पंडित