उज्जैन जिले में एक हजार से अधिक स्कूलों में एक हजार फिजुल शिक्षक, एक दो विषय पढ़ाकर मजे कर रहे है…

उज्जैन। उज्जैन जिले में एक हजार से अधिक सरकारी स्कूलों का संचालन होता है लेकिन इन सरकारी स्कूलों में लगभग एक हजार से अधिक ही ऐसे शिक्षक है जिन्हें ’ फिजुल’ माना जा सकता है  अर्थात ये शिक्षक अतिरिक्त शिक्षक है।

 हालांकि स्थानीय शिक्षा विभाग का प्रयास है कि इसी नये शैक्षणिक सत्र में ऐसे शिक्षकों को अतिरिक्त रूप से पीरियड दिए जाए ताकि इनका उपयोग हो सके। बावजूद इसके जब तक सरकार की तरफ से हरी झंडी नहीं मिल पाती तब तक ये फिजुल शिक्षक मजे करते रहेंगे।
सरकारी स्कूलों  में छात्रों  की संख्या बढऩे की बजाय घटती ही रही है। सबसे ज्यादा नुकसान कोरोना काल  में हुआ और बड़ी संख्या में बच्चों ने स्कूल जाना बंद किया। हालांकि मध्यान्ह भोजन से लेकर नि:शुल्क स्कूलों में पढ़ भी रहे हैं। 35 बच्चों पर एक शिक्षक  होना चाहिए। मगर उज्जैन  सहित प्रदेशभर में 36 हजार से ज्यादा शिक्षक अतिरिक्त पदस्थ हैं। छात्र कम और पढ़ाने वाला ज्यादा हैं। उज्जैन में ही लगभग एक हजार शिक्षक सरकारी स्कूलों में अतिरिक्त यानी फिजूल हैं। दूसरी तरफ सबसे अधिक फिजूल शिक्षक सतना में 1513, बालाघाट में 1477, सागर में 1446, रीवा में 1415, तो राजधानी भोपाल में 1134 और इंदौर में लगभग 1400 शिक्षक ज्यादा हैं। दूसरी तरफ हर साल शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को निशुल्क प्रवेश दिलवाया जाता है। उसके चलते सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले छात्र भी निजी स्कूलों में दाखिला ले लेते हैं। नतीजतन हर साल हजारों सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे निजी स्कूलों में पहुंच जाते हैं। दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों में चूंकि शिक्षा का स्तर, सुविधाएं अत्यंत दयनीय रहती है, नतीजतन सामान्य व्यक्ति भी अपने बच्चों को निजी स्कूलों में ही पढ़ाता है, भले ही वह गली-मोहल्ले, कॉलोनी का छोटा निजी स्कूल हो। हालांकि सीएम राइज स्कूलों के जरिए सरकारी स्कूलों की दुर्दशा को सुधारा भी जा रहा है और दिल्ली की तर्ज पर इन सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों की तरह साधन सम्पन्न भी बनाया जा रहा है। उज्जैन सहित प्रदेशभर में ही सीएम राइज स्कूलों के तहत सरकारी स्कूलों का उन्नयन किया जा रहा है और करोड़ों की नई बिल्डिंग बन रही है।
 इनका कहना है

जिले में लगभग एक हजार अतिरिक्त शिक्षक है और ये स्कूलों में पदस्थ है। हालांकि ऐसे शिक्षकों के पास कम काम है। जब तक ऊपर से निर्देश नहीं होते तब तक स्थिति यथावत
ही रहेगी। – गिरीश तिवारी, एडीपीसी