रुपए जमा करने का बनाते रहे दबाव, मासूम की मौत के बाद अस्पताल ने शव देने से किया माना

उज्जैन। 10 दिन के मासूम की 2 घंटे बाद ही मौत हो गई। अस्पताल स्टाफ ने रूपों की मांग करते हुए शव देने से मना कर दिया। देर रात तक मासूम के परिजनों और स्टाफ के बीच बहस होती रही। पुलिस के हस्तक्षेप पर मासूम का शव परिजनों को दिया गया।

कठिया खेड़ी सारंगपुर के रहने वाले 10 दिन के मासूम को खून में इंफेक्शन था। परिजनों ने उसे अगर के सरकारी अस्पताल में भर्ती किया था। हालत में सुधार नहीं होने पर शनिवार शाम परिजन मासूम को उज्जैन लेकर आ गए। जहां उज्जैन ऑर्थो अस्पताल में भर्ती किया गया। मासूम की मां रुबीना से अस्पताल स्टाफ ने 10 हजार रुपए जमा करने के लिए कहा परिजनों ने 5000 रुपए जमा कर दिए। कुछ देर बाद ही अस्पताल स्टाफ ने परिजनों को दवाइयो का पर्चा थमा दिया। परिवार 7000 की दवा लेकर आया। कुछ देर बाद ही अस्पताल ने मासूम की मौत होने की खबर परिजनों को दे दी। मासूम का शव मांगा तो अस्पताल स्टाफ ने 5000 जमा करने की मांग रख दी। परिजनों ने 2 घंटे में 7000 की दवा मासूम को कैसे दी गई इसकी बात पूछी तो केस काउंटर पर बैठे युवक ने बहस शुरू कर दी उसका कहना था कि मैं खुद नौकरी करता हूं रुपए जमा कराओगे तभी मिलेगा बच्चा। परिजनों ने विरोध किया तो उसने सुबह बच्चा देने की बात कही। देर रात तक अस्पताल में मामला गरमाता रहा। कुछ लोगों ने परिजनों को कहा कि पुलिस को सूचना दें।

 

देर रात डायल हंड्रेड सूचना मिलने पर पहुंची और अस्पताल स्टाफ से मासूम का शव परिजनों को दिलवाया गया बावजूद इसके अस्पताल स्टाफ ने 1000 और जमा कर लिए। मृत मासूम की नानी राबिया बी निवासी नलखेड़ा आगर ने बताया कि उसकी बेटी डिलीवरी के लिए मायके आई थी ससुराल सारंगपुर में है। बेटे को जन्म देने के बाद तबीयत बिगड़ी तो सामने आया कि खून में इंफेक्शन है जिसके चलते अगर अस्पताल में भर्ती किया गया था जहां हालत में सुधार नहीं होने पर उज्जैन लेकर आए थे। भारती करने से पहले 5000 रुपए लिए गए। वहीं देर से 2 घंटे में 10 दिन के बच्चे को 7000 की दवा भी अस्पताल द्वारा दे दी गई बावजूद इसके बाहर उपयोग की मांग कर रहे थे। विदित हो कि निजी अस्पतालों द्वारा मरीज का उपचार शुरू करने से पहले ही हजारों रुपए जमा कर लिए जाते हैं और हजारों की दवा मंगवा ली जाती है बावजूद इसके मरीज की जान नहीं बच पाती और रुपए जमा करने की मांग स्टाफ द्वारा शुरू कर दी जाती है। पूर्व में भी शहर के कई निजी अस्पतालों में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिसको लेकर कई बार पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा है बावजूद इसके निजी अस्पतालों का रवैया नहीं बदल रहा है।