खुसूर-फुसूर हम नहीं सुधरेंगे, हादसे को आमंत्रित करेंगे

दैनिक अवन्तिका

खुसूर-फुसूर

हम नहीं सुधरेंगे, हादसे को आमंत्रित करेंगे

हमारे यहां लोकोक्ति है कि सांप निकलने के बाद ही हम लाठी पिटते हैं और श्मसान में जब तक होते हैं तब तक ही संकल्प की बात करते है इसे मशानिया संकल्प भी कहा जाता है। अक्सर हमारे यहां हादसे दुर्घटनाएं होती रहती है। इनसे हम मात्र कुछ दिनों की चर्चाओं का सबक ही सीख पाते हैं उसके बाद हमारी आपकी सबकी स्थिति एक सी ही होती है। मालवा में तो यह पुरानी रीत सी ही है कि जब तक हादसे और दुर्घटना का दोहराव न हो तब तक तो हमें उगत ही नहीं उडती है। भगवान की सवारी में पुलिस और प्रशासन की व्यवस्था एवं सुरक्षा को देखते हुए कहा जा सकता है कि जमकर मेहनत हुई और करना पडी । हाथों में रस्से की रगड से जवानों को खून सा जम गया। कई जगह पर बेरिकेडस को लेकर जनता से मशक्कत करना पडी है। पालकी की सुरक्षा में जी तोड मेहनत की गई। जवान तो जवान निरीक्षक स्तर के अधिकारियों ने भी जमकर रस्से से रस्साकशी की और अंतत: अपने लक्ष्य को भगवान की प्रार्थना और कृपा से प्राप्त किया। कतिपय श्रद्धालुओं ने जरूर सवारी मार्ग के कुछ स्थानों पर हादसों को आमंत्रण देने वाले काम किए । जिसे लेकर यही कहा जाएगा कि चलती सवारी में इस तरह से घूसने की स्थिति से सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देने जैसा काम किया गया। एक स्थल ऐसा भी रहा जहां हादसे को आमंत्रित हरकत की गई जिसकी और ध्यान दिया जाना अतिआवश्यक सा हुआ है।कुछ समय पहले मंदिर के गर्भगृह में गुलाल गन का कहर बरपा था। अग्निकांड हुआ था। सोमवार को सवारी जब मंदिर एवं कोट मोहल्ला के बीच थी वहां पर एक भवन के पास में बेरिकेडस के बीच से एक श्रद्धालु ने जन्मदिन में उपयोग किए जाने वाले क्रेकर एवं स्प्रेगन का उपयोग किया था। जरा सी गडबड की स्थिति में यह आग भी पकड सकती थी। इस स्थिति की पूर्नर्रावृत्ति सवारी मार्ग पर दो से तीन स्थानों पर देखी गई। खुसूर-फुसूर है कि हादसों को आमंत्रण देने वाली ऐसी हरकतों को करने वालों के लिए भीड के बीच में रोकने वाले सुरक्षाकर्मियों की तैनाती समयानुकुल की जाना चाहिए। नहीं तो बाद में लाठी पीटने का काम तो हमारे गुण में शामिल हैं ही।