-माधवनगर जिला अस्पताल में उपर वेल बूटा अंदर पेंदा फूटा, ठेकेदार कर्मी की मनमर्जी पर ओपीडी पर्चे के रेट 10 रूपए

 

 

-कोरोना काल का आक्सीजन प्लांट बंद हुए लंबा समय हुआ किसी को लेना-देना नहीं

उज्जैन। सिंहस्थ 1992 में अस्तित्व में आया माधवनगर अस्पताल 32 वर्षों में भी अपनी सार्थकता सिद्ध नहीं कर सका है। इससे तो माधवनगर डिस्पेंसरी ही बेहतर थी। इस जिला अस्पताल में चार गुमटी प्रसुति गृह का संलग्नीकरण किया गया था उसे भी यह सार्थक नहीं कर सका है। उस दौर में वहां मासिक प्रसवों की संख्या अभी के माधवनगर प्रसुतिगृह से अधिक हुआ करती थी। इसे यही कहा जाएगा कि उपर से वेल बूटा लगा हुआ है और अंदर व्यवस्थाओं का पैंदा फूटा हुआ है। हाल यह हैं कि ठेके पर जारी पर्ची बनाने के काम में मनमर्जी का दाम चल रहा है कभी 5 रूपए तो कभी 10 रूपए लिए जा रहे हैं।

आमजन को स्वास्थ्य सुविधा की सरकारों की प्रतिबद्धता की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाह्य रोगी विभाग ओपीडी में पर्ची बनाने का काम ठेके पर है। इसमें मनमर्जी का हाल है। कभी पर्ची के 5 रूपए तो कभी पर्ची के 10 रूपए आने वाले से वसूले जा रहे हैं। खास तो यह है कि माधवनगर रोगी कल्याण समिति की बैठक में इस पर कब निर्णय पारित हुआ और उसकी प्रोसिडिंग कब हो गई यहीं बहुत बडा घपला हो गया है। रोगी कल्याण समितियां डब्बे में बंद कर सपेरे के पिटारे की तरह उपयोग की जा रही हैं।

आगंतुक के लिए हैरान करने वाली पार्किंग-

माधवनगर अस्पताल में प्रवेश के लिए प्रांगण के मुहाने पर दो लोहे के बडे द्वार लगे हैं। एक द्वार से प्रवेश करने पर उसका मार्ग सीधे अस्पताल के पोर्च में और उसके आगे स्टोर सहित घुमकर प्रांगण में आता है। दुसरे द्वार का प्रवेश मार्ग सीधे प्रांगण सह पार्किंग की और जाता है। अस्पताल में प्रवेश के लिए पोर्च में जाने वाले गेट को खुला रखा जाता है जबकि यह मार्ग आवश्यक स्थितियों में एंबुलेंस का होना चाहिए जो सीधे गंभीर मरीजों को पोर्च में ले जा सके। इसकी अपेक्षा दुसरे मार्ग को खुला रखा जाना चाहिए की आगंतुक सीधे प्रांगण सह पार्किंग में जाकर वहां से पैदल पोर्च में होता हुआ अस्पताल में प्रवेश करें। इस छोटी सी बात से भी यहां की व्यवस्था का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है।

मात्र दो मेडिकल आफीसर-

माधवनगर अस्पताल में हाल की स्थिति में मात्र दो मेडिकल आफीसरों के होने की स्थिति सामने आ रही है। इनमें से भी एक संलग्नीकरण यानिकी अटैचमेंट पर यहां हैं। इसकी अपेक्षा यहां प्रथम श्रेणी के विशेषज्ञ 5 चिकित्सक पदस्थ हैं। ओपीडी में मेडिकल आफीसरों का दम निकला जा रहा है। शहर की आबादी दक्षिण की और प्रतिदिन बढ रही है। ऐसे में इस अस्पताल पर बाह्य रोगी की संख्या बढती ही जा रही है।

चार गुमटी भला था माधवनगर प्रसुति से-

पूर्व में फ्रीगंज में प्रसुति के लिए शासकीय स्तर पर चार गुमटी अस्पताल चलाया जाता था। कभी यहां महिला चिकित्सक डा .तपकीरे और डा. पेंढारकर का नाम चला करता था। दक्षिण के पूरे गांव सहित शहरी स्थिति में यहां महीने में न्यूनतम 65 और अधिकतम 255 प्रसव करवाए गए। इस अस्पताल को सालों पहले स्वास्थ्य विभाग प्रबंधन ने माधवनगर जिला अस्पताल में संलग्न कर दिया। अब हाल यह हैं कि यहां के प्रसुति विभाग में महीने में 50 प्रसव नहीं हो पा रहे हैं। इसके पीछे सामने आ रहा है कि यहां से प्रसुताओं और उनके परिजनों को डरा कर समस्या बताकर रेफर करने में देर नहीं की जाती है। सालों पहले सुविधाहीन स्थितियों में भी तत्कालीन महिला चिकित्सकों के जहां नाम चलते रहे हों वहां आज सामान्य प्रसुति के मामले ही घट गए हैं। चिकित्सकों के नाम के चर्चे तो दूर की बात है।

आक्सीजन प्लांट बंद हुआ-

कोरोना काल में माधवनगर अस्पताल सहित जिले में 4 आक्सीजन प्लांट बनाए गए थे। इनसे उत्पादन करते हुए यहीं के यहीं आक्सीजन की पूर्ति की जाना थी। माधवनगर अस्पताल में लगाया गया आक्सीजन प्लांट मात्र कुछ माह भी नहीं चला और उसके बाद से ही यह बंद पडा हुआ है। बहुत ज्यादा पूछ परख में इसे चलना बता दिया जाता है वास्तव में यह बंद ही पडा है और इसके संधारण के नाम पर भी कागज चलाकर नोट का उत्पादन किया जा रहा है।

अधिसूचना मजाक बनी-

व्यवस्था तो ठीक है जिला स्तर पर भारत सरकार के 21 सितंबर 2016 के गजट नोटिफिकेशन भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद की अधिसूचना का पालन करवाने में ही स्वास्थ्य विभाग बेहाल है। अधिसूचना के तहत औषधियां जैनरिक नाम से केपिटल लेटर्स में लिखी जाना है। दवा का पर्चा दवाओं का प्रयोग तर्क संगत हो। हाल यह हैं कि 8 साल बाद भी इस पर स्वास्थ्य विभाग प्रशासन कार्रवाई नहीं कर सका है। अब भी निजी स्तर पर तो इसका पालन ठीक है सरकारी अस्पतालों में भी इसका पालन करवाने में स्वास्थ्य विभाग प्रशासन कमजोर साबित हो रहा है।

अब ये विभाग भी माधवनगर में जाएंगे-

जिला अस्पताल भवन के स्थान पर कालेज भवन निर्माण की शुरूआत उज्जैन के लिए अच्छे संकेत हैं । इसके चलते जिला अस्पताल से डायलेसिस, डेंटल,मनोचिकित्सा, एलटीटी नसबंदी आपरेशन, केंसर युनिट माधवनगर अस्पताल में शिफ्ट की जाना है। एलटीटी विभाग तो स्थानांतरित भी कर दिया गया है और युनिट के प्रथम श्रेणी अधिकारी डा. राजेन्द्र उपलावदिया ने अपना काम भी शुरू कर दिया है। अभी शेष विभागों के स्थानांतरण कि प्रक्रिया जारी है।

You may have missed