उज्जैन जिले में 600 से अधिक अतिशेष शिक्षक….फिर भी नहीं हो रही सरकारी स्कूलों में कमी दूर
उज्जैन। उज्जैन जिले में संचालित होने वाले सरकारी स्कूलों में 600 से अधिक अतिशेष शिक्षक है लेकिन इसके बाद भी जिले के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर नहीं की जा रही है।
हालांकि स्थानीय स्कूली शिक्षा विभाग के अधिकारी यह चाहते है कि शिक्षकों की कमी को इन अतिशेष शिक्षकों के माध्यम से दूर कर लिया जाए लेकिन जब तक भोपाल से हरी झंडी नहीं मिले तब तक वे अधिकारी कुछ नहीं कर सकता है। बता दें कि जिले में सरकारी स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे है।
उज्जैन जिले सहित प्रदेश के सैकड़ों सरकारी स्कूल एक तरफ शिक्षकों की बेहद कमी से जूझ रहे हैं , तो दर्जनों स्कूल ऐसे हैं, जिनमें स्वीकृत पदों की अपेक्षा अधिक शिक्षक पदस्थ हैं। अगर इन अधिक पदस्थ शिक्षकों को कमी वाले स्कूलों में पदस्थ कर दिया जाए , तो बहुत कुछ हद तक स्कूलों में शिक्षकों की कमी की समस्या से निजात पायी जा सकती है। जरूरत है तो बस विभाग द्वारा दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाने की।
राजनीतिक व प्रशासनिक रसूख है
उज्जैन जिले सहित प्रदेश में इन दिनों सरकारी स्कूलों में अतिशेष शिक्षकों की संख्या लगभग 36 हजार से अधिक है। यही वे शिक्षक हैं, जिनका अपना राजनीतिक व प्रशासनिक रसूख है। यही वजह है कि न तो लंबे समय से कोई उन्हें हटाने की हिम्मत दिखा पाया है और न ही उन्हें मिलने वाले वेतन भत्तों के भुगतान में कोई दिक्कत आ रही है। स्कूल शिक्षा विभाग के पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार उज्जैन जिले सहित अभी ऐसे 13 जिले हैं जहां पर अतिशेष शिक्षकों की संख्या एक हजार से अधिक हैं। हालांकि स्थानीय स्कूली शिक्षा विभाग के अधिकारी यह आंकड़ा छः सौ से कुछ अधिक बताते है।
शिक्षकों का अनुपात 351 का होना चाहिए
शिक्षा के अधिकार की बात की जाए तो छात्रों और शिक्षकों का अनुपात 351 का होना चाहिए, यानी 35 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए। लेकिन अधिकांश स्कूल इस मापदंड पर ही खरे नहीं उतर रहे हैं।
पदस्थ होने को लेकर अरुचि
शिक्षकों में ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में पदस्थ होने को लेकर अरुचि। दरअसल, हर शिक्षक चाहता है कि वह शहरी इलाकों के स्कूलों में पदस्थ हो। इसकी वजह है शिक्षकों में अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा आधुनिक शिक्षण तकनीकों तक पहुंच और समग्र रूप से बेहतर जीवन जीने की स्थितियों जैसे कारणों के प्रति आकर्षित होना। मौजूदा समय में वे ही शिक्षक ग्रामीण इलाकों में अपनी पदस्थापना कराते हैं, जिनके सामने कोई मजबूरी होती है।