खुसूर-फुसूर शिकायतों की संख्या गायब

खुसूर-फुसूर

शिकायतों की संख्या गायब

दैनिक अवन्तिका  उज्जैन

जनसमस्याओं के निराकरण की दिशा में सार्थक पहल जनसंवाद कार्यक्रम के साथ की गई है लेकिन इसकी वास्तविकता को ढांपने के प्रयास कतई तर्क संगत नहीं कहे जा सकते हैं। आम आदमी को जो अधिकार मिले हुए हैं उनकी ही पूर्ति नहीं हो पा रही है। सडक पानी बिजली को लेकर ही हमारी समस्याओं का निराकरण नहीं हो पा रहा है। जनसंवाद कार्यक्रम के तहत स्थानीय सरकार से जुडे मामले ही ज्यादा सामने आ रहे हैं। बुधवार को आयोजित शिविर में दो जोन के दो वार्ड के लिए दो घंटे के शिविर में आई 47 शिकायतों ने यह तय कर दिया कि स्थानीय सरकार को अब विचार करना चाहिए कि आमजन की जो आवश्यकताऐं हैं उसके लिए गली मोहल्ले तक जाकर छोटी-छोटी समस्याओं के निदान करना ही होंगे। जनसंवाद के दुसरे दिन जो आयोजन हुआ उसमें सिरे से ही शिकायतों की संख्या ही गायब कर दी गई,वास्तविकता को स्वीकार करते हुए जनसुनवाई की तरह शिकायतों का खुलकर बयान किया जाना चाहिए जिससे की स्थिति साफ हो सके की स्थानीय सरकार के कौन से विभाग के हाल क्या हैं। इस बात की पहल खुद जनप्रतिनिधियों को करना चाहिए की आने वाली शिकायतों को विवरण भी सामने लाया जाए और विभागीय स्तर पर उनमें से निराकरण के लिए की गई पहलों को भी सामने रखा जाना चाहिए। शिविर के दुसरे दिन स्थानीय सरकार के मिडिया विभाग की और से जारी प्रेस नोट में इस मुद्दे को गोल कर दिया गया। अगर प्रारंभिक रूप से ही जनसंवाद में इस तरह से कुल्हड में गुड फोडने की स्थिति रही तो इसके हश्र भी पूर्व में हुई समस्या निदान शिविरों की तरह ही हो जाएंगे और इसकी सार्थकता पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। खुसूर-फुसूर है कि जनसंवाद शिविरों का आयोजन शनिवार रविवार को अवकाश दिवस में किया जाना चाहिए जिससे की इन दिनों में आम आदमी अपने कार्य से फुर्सत में होगा और समस्या / शिकायतें वह समय पर शिविर में पहुंचकर कर्ताधर्ताओं के समक्ष रख सकेगा। कार्य दिवस में लगाए जाने वाले शिविरों में कई लोग नहीं पहुंच पाएंगे। जन संवाद शिविर के लिए नगर निगम झोन वार टीमों को इसके लिए जिम्मेदारी देते हुए शनिवार रविवार को ही इनके आयोजन करे तो इसकी सार्थकता को पाया जा सकता है। जनसंवाद के इस कार्यक्रम को अगर सफल ही बनाना है तो शिकायतों की संख्या के नजरिए से इसे न देखते हुए निदान का नजरिया अपनाया जाना चाहिए ।