आखिर क्यों होती है परिवार में घरेलू हिंसा
परिवार का अर्थ होता है एकता...या फिर परिवार के सदस्यों का एक साथ रहना..। वस्तुतः परिवार किसी भी सामाजिक ढांचे की रीढ़ माना जाता है लेकिन वर्तमान समय में न केवल परिवार में विघटन की स्थिति को देखा जा रहा है वहीं घरेलू हिंसा जैसे मामले भी सामने आते रहते है। सवाल यह उठता है कि आखिर परिवार में घरेलू हिंसा होती क्यों है या फिर इसके पीछे मूल कारण क्या है।
वैसे देखा जाए तो घरेलू हिंसा होने के कई मामले न केवल समाज में सार्वजनिक हो जाते है या फिर अंदर ही अंदर संबंधित परिवार के लोग घुटन महसूस कर अपना जीवन नर्क बना देते है। मौजूदा समय ऐसा है कि न चाहते हुए भी परिवार में कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में आपसी मनमुटाव, एक दूसरे के प्रति तनाव और इन सबके बीच परिवार के बच्चे या किशोरवय उम्र के सदस्य प्रताड़ित या अपमानित होते रहते है। चाहे आर्थिक परेशानी का मुख्य कारण हो या फिर चाहे अन्य कोई कारण लेकिन बावजूद इसके घरेलू हिंसा जैसे मामले लगातार बढ़ते जा रहे है। यह निश्चित ही चिंता का विषय माना जा सकता है।
हिंसा का एक अंतर-पीढ़ी चक्र पैदा कर सकता है
घरेलू हिंसा अक्सर तब होती है जब दुर्व्यवहार करने वाला मानता है कि वे इसके हकदार हैं, या यह स्वीकार्य है, न्यायोचित है, या रिपोर्ट किए जाने की संभावना नहीं है। यह बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों में हिंसा का एक अंतर-पीढ़ी चक्र पैदा कर सकता है, जो महसूस कर सकते हैं कि ऐसी हिंसा स्वीकार्य है या उसे माफ किया जाता है। बहुत से लोग खुद को दुर्व्यवहार करने वाले या पीड़ित के रूप में नहीं पहचानते हैं, क्योंकि वे अपने अनुभवों को पारिवारिक संघर्ष के रूप में मान सकते हैं जो नियंत्रण से बाहर हो गए थे।
घर में बच्चों पर प्रभाव
दुर्भाग्य से, बच्चे भी अक्सर घरेलू हिंसा के शिकार लोगों का निशाना बनते हैं। हालांकि, जब बच्चों को सीधे शारीरिक या भावनात्मक रूप से प्रताड़ित नहीं किया जाता है, तब भी घर में स्थिति का तनाव बहुत नुकसान पहुंचाता है। घरेलू हिंसा देखने वाले बच्चों में तनाव, चिंता और भावनात्मक चुनौतियाँ बढ़ जाती हैं। इससे न केवल उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, बल्कि स्कूल में ध्यान केंद्रित करने और सीखने की उनकी क्षमता पर भी असर पड़ता है। शैक्षणिक सफलता की कमी इन बच्चों के जीवन में और भी दूरगामी चुनौतियों का कारण बन सकती है।
माता-पिता द्वारा संतान को प्रताड़ित करना
अब बात आती है घरेलू हिंसा के दौरान माता पिता द्वारा संतान को प्रताड़ित करने की। जब आपसी तनाव, मनमुटाव या फिर सोच की संकीर्णता परिवार में होती है तब पति पत्नी में भी आपस बिल्कुल नहीं बनती है और फिर इसका विपरित परिणाम सामने आता है संतान के रूप में जो माता पिता द्वारा प्रताड़ित किए जाते है। चाहे मानसिक रूप से प्रताड़ित करना हो या फिर चाहे शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाना हो। इसका दुष्प्रभाव बच्चों पर पढ़ता ही है। इसका परिणाम यह होता है कि या तो बच्चे परिवार से पूरी तरह विलग हो जाते है या फिर तनावग्रस्त होकर आत्मघाती जैसा कदम तक उठाने में भी संकोच नहीं करते है। इसका प्रभाव मानसिक तौर पर जब पढ़ता है तो बच्चों की उम्र जो पढ़ाई या खेलकूद की होती है, वह खत्म हो जाती है।
अपने में ही खोया रहता है
स्थिति यह तक निर्मित हो जाती है कि बच्चे अपने में सीमित हो जाते है और उन्हें किसी दुनियादारी से मतलब नहीं होता है। न ठीक से खाना और न ठीक से पीना….! यदि किसी ने उसके मन को टटोलने का भी प्रयास किया तो सिवाय मौन धरने के अलावा उसके पास कुछ नहीं रहता है। परिवार में घरेलू हिंसा का जितना विपरित असर बच्चों पर होता है, उतना संभवतः अन्य सदस्यों पर नहीं। क्योंकि परिवार के सदस्य लड़ झगड़कर अपने अपने कार्यों में व्यस्त हो जाते है और फिर घर में अकेले रह जाते है बच्चे…! जो मानसिक रूप से तनावग्रस्त होकरअपना जीवन बर्बाद करते है।
चाहकर भी नहीं करते शिकायत
कई परिवार ऐसे होते है जहां दिन उगने के साथ ही किसी न किसी बात को लेकर आपसी जूतम पैजार होने का सिलसिला शुरू हो जाता है…। और फिर ऐसे में टारगेट बनते है बच्चे या फिर गुस्से की भड़ास बच्चों पर निकलती है। यह भड़ास चाहे बच्चों के साथ मारपीट की हो या फिर अपशब्द बोलने के रूप में या फिर चाहे खाना समय पर न देने अर्थात भूखा रखने के रूप में ही क्यों न हो। स्थितियां ऐसी बन जाती है कि बच्चा अपने साथ होने वाली ’पारिवारिक प्रताड़ना’ की शिकायत तक नहीं कर सकता है क्योंकि वह यह जान चुका होता है कि यदि मैं कुछ कहूंगा तो उल्टे
मुझे ही प्रताड़ित होना पड़ेगा।
बच्चे मन के सच्चे…आंखों के प्यारे…लेकिन
माना जाता है कि बच्चे मन के सच्चे होते है या फिर भगवान का रूप होते है…परिवार या माता पिता की आंखों के तारे होते है लेकिन घरेलू हिंसा के चक्कर में ये सब यर्थाथ के धरातल पर नहीं दिखाई देता है। बच्चों से अपेक्षाएं की जाएगी कि वह घर का काम करें या फिर माता पिता की सेवा चाकरी करें लेकिन आपसी हिंसा में बच्चे ही टॉर्चर होते है। यह बात प्रत्यक्ष रूप से ही सामने आती रहती है।
अपराध की दुनिया में भी रख देते है कदम
ऐसा नहीं है कि समाज को अपने से संबंधित परिवारों से कोई सरोकार नहीं होता है। होता है लेकिन किसी सामाजिक स्वार्थ होेने के कारण…! यह पता भी होता है कि किसी परिवार में बच्चों के साथ ’अन्याय’ हो रहा है। बावजूद इसके समाज के वरिष्ठ दखलअंदाजी नहीं करते है और यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते है कि ’ यह उनका घरेलू मामला है’ लेकिन जब कोई बात सामने आती है तो चटखारे लिए जाते है। यह सच है कि जितना माता पिता अपने बच्चों के लिए सोचते है उतनी ही सोच बच्चे भी रखते है। लेकिन जब घरेलू हिंसा या प्रताड़ना का शिकार होते है तो बच्चे अपराध की दुनिया में भी कदम रखने से पीछे नहीं हटते है। अक्सर यह सामने आता रहता है कि बच्चा चोरी करने जैसे अपराध या किसी के साथ मारपीट करने जैसे अपराध में शामिल हो गया है लेकिन कारण जब सामने आते है तो यही पता चलता है कि उसे माता पिता का स्नेह या दुलार नहीं मिला या फिर उसके माता पिता अपने में ही मशगूल रहकर दिन रात झगड़ते रहते थे।