कलेक्टर रहते मनीष सिंह ने श्रीराम बिल्डर्स की टीएनसी, विकास अनुमति और भवन अनुज्ञा निरस्त करवाई थी

श्रीराम बिल्डर की जमीन पर बने मकानों को 8 अगस्त तक जमींदोज करना ही है, क्योंकि कोर्ट ने यह मियाद तय की

ब्रह्मास्त्र इंदौर

शहर भर में इन दिनों एक ही चर्चा है की क्या न्याय नगर के 150 रहवासियों के मकान टूटेंगे या बचेंगे। शायद शहर में पहली बार ऐसा मौका आया है कि सभी की सहानुभूति होने के बावजूद भी इस मामले में कोई कुछ नहीं कर पा रहा है। वैसे इस इंदौर शहर को इस रूप में जाना जाता है कि यहां के लोग किसी के साथ अन्याय नहीं होने देते हैं। लेकिन न्याय नगर के लोगों के साथ अन्याय हुआ और अन्याय करने वाले बेगुनाह बने बैठे हैं। उन पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

दूसरी ओर जिला प्रशासन की भी मजबूरी है कि उन्हें हर हाल में श्रीराम बिल्डर की जमीन पर बने मकानों को 8 अगस्त तक जमींदोज करना ही है। क्योंकि कोर्ट ने यह मियाद तय की है। इंदौर शहर में जहां पूर्व लोकसभा अध्यक्ष, कई सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के ख्यात अभिभाषक प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री, जल संसाधन मंत्री,सांसद इंदौर के नौ विधायक सहित प्रदेश के अन्य जिलों के कई विधायक सांसद महापौर एमआईसी सदस्य और 85 पार्षद रहते हैं लेकिन सभी मजबूर हैं की इस मामले में कोई कुछ कर नहीं कर पा रहा है।

इस मामले में प्राप्त जानकारी के अनुसार न्याय नगर सोसायटी की जमीन के एक भाग में प्रेस्टीज ग्रुप के डेविड जैन और राकेश जैन ने अपने कर्मचारियों को सदस्य बनाकर प्लाट लिए थे। तब से ही इस कहानी की शुरूआत होती है बाद में योजनबद्ध तरीके से श्री राम बिल्डर्स के कर्ताधर्ता अग्रवाल बंधु सक्रिय हुए और इन प्लाटों को समिति को सरेंडर करा दिया। बाद में न्याय नगर सोसाइटी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए अवैध तरीके से सहकारिता विभाग से उक्त जमीन बेचने की अनुमति ले ली। जबकि सोसाइटियां कुछ परिस्थितियों में ही अपनी जमीन बेच सकती हैं। वह परिस्थितियां यहां नहीं थीं। बाद में श्रीराम बिल्डर ने उक्त जमीन खरीद ली। उक्त जमीन को आईडीए की स्कीम नंबर 171 से भी कोर्ट के आदेश पर मुक्त करा लिया। यही नहीं खंडेलवाल बंधुओं ने उक्त जमीन पर टीएनसी अनुमति भी प्राप्त कर ली। यही नहीं नगर निगम ने भी उक्त जमीन पर विकास अनुमति और बिल्डिंग परमिशन जारी कर दी। बाद में जब रहवासियों ने तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह को इसकी शिकायत की तो मनीष सिंह ने रहवासियों के पक्ष में कार्यवाही करते हुए उक्त जमीन की टीएनसी अनुमति, नगर निगम द्वारा दी गई विकास अनुमति और बिल्डिंग परमिशन निरस्त करवा दी। इसके खिलाफ अग्रवाल बंधु हाई कोर्ट चले गए और हाई कोर्ट से इन्हें राहत मिल गई।

जिला कलेक्टर मनीष सिंह द्वारा निरस्त कराई गई सभी अनुमतियां फिर से बहाल हो गईं। इस फैसले के खिलाफ प्रशासन ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की लेकिन वहां भी गरीब रहवासियों को राहत नहीं मिली। इस पूरे मामले में सबसे बड़ा पहलू यह है कि समिति द्वारा गैर कानूनी तरीके से बेची गई उक्त जमीन पर मनोज नागर, कमल सोलंकी, राजेश राठौर और अन्य लोग नोटरी के आधार पर गरीबों को प्लाट बेचते रहे। गरीबों को ठगने वाले असली गुनहगार उन्हें उक्त जमीन पर प्लाट बेचने वाले हैं। लेकिन उन पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। अब देखना यह है कि क्या न्याय नगर के लोगों को ऐसी परिस्थितियों में न्याय मिलेगा या गरीबों के मकान जमींदोज होंगे। क्या गरीबों के भाग्य में सिर्फ मरना ही लिखा है।