“परिसर चलो अभियान” मात्र अभाविप की नहीं अपितु समाज की आवश्यकता है- चेतस सुखड़िया
इंदौर। यदि हम विकसित भारत देखना चाहते हैं तो विकसित भारत का नेतृत्व करने वालों का जीवन भी आनंदमयी सार्थक बनाना पडेगा।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद इंदौर महानगर द्वारा परिसर चलो अभियान के निमित्त आनंदमय सार्थक विद्यार्थी जीवन पर शासकीय होलकर विज्ञान महाविद्याय में संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अभाविप मध्य क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री चेतस सुखडिया, प्राचार्य डॉ सुरेश सिलावट, महानगर मंत्री सार्थक जैन एवं महानगर छात्रा प्रमुख कु. कामक्षा गौड़ ने मां सरस्वती एवं स्वामी विवेकानन्द जी के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सुरेश सिलावट ने स्वागत भाषण दिया।
तत्पश्चात मध्य क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री चेतस सुखड़िया ने उपस्थित शिक्षक एवं छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि परिसर के दो प्रमुख घटक हैं गुरुजन एवं विद्यार्थी। गुरुजनों का परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से विद्यार्थियों के विकास की चिंता करना भारतीय ज्ञान परंपरा की महत्वपूर्ण घटक है ।विद्यार्थियों एवं शिक्षकों बिना महाविद्यालय का भवन मात्र खंडहर कहा जायेगा।
कोरोना के पश्चात विद्यार्थियों की बढ़ती अनुपस्थित हमारे लिये पीड़ा का विषय है। विद्यार्थियों की गिरती अनुपस्थिति चिंता का विषय है। ओर इसलिए परिषद् ने देश भर में “परिसर चलो अभियान” अपने हाथ में लिया है। “परिसर चलो अभियान” मात्र अभाविप की नहीं अपितु समाज की आवश्यकता है।
शिक्षा के संस्थान केवल विद्यार्थियों का नहीं अपितु एक पीढ़ी का निर्माण करते हैं।
परिसर की महत्ता विद्यार्थियों एवं शिक्षकों से ही है। प्राचीन काल में भारत, उत्कृष्ट शिक्षा, उत्तम ज्ञान का केंद्र था। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय को तहस नहीं कर भारत की शिक्षा व्यवस्था का षड्यंत्रपूर्वक ध्वस्त किया गया। भारतीय गुरुकुलों द्वारा उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान की जाती थी जो विद्यार्थियों को सर्वश्रेष्ठ बनाने में सहायक होती थी। गुरुकुलों में प्राणी मात्र के कल्याण की चिंता सिखाया जाता था। मानवीय संबंधों के आधार पर प्रकृति के साथ जोड़ने की शिक्षा दी जाती थीं। सुखडिया ने आगे कहा कि विद्यार्थियों में बढ़ रही आत्महत्या कहीं ना कहीं परिसर में आनंदमयी सार्थक विद्यार्थी जीवन का अभाव है। शिक्षक और परिसर को इसकी चिंता करनी चाहिए।
छात्रों से आग्रह करते हुए कहा कि समाज से कम लेना और समाज को अधिक देना यह सार्थक जीवन है। सफलता से कहीं महान सार्थकता है। जलवायु परिवर्तन के लिये विद्यार्थियों को ज़िम्मेदार बनाना पडेगा। यह संस्कार देना पडेगा। ऐसे छोटे-छोटे प्रयोगों से प्रत्येक विद्यार्थी का जीवन आनंदमयी एवं सार्थक बना सकते हैं । यदि हम विकसित भारत देखना चाहते हैं तो विकसित भारत का नेतृत्व करने वालों का जीवन भी आनंदमयी सार्थक बनाना पडेगा। इस कार्यक्रम में प्राध्यापक सहित 300 से अधिक विद्यार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का आभार महानगर मंत्री सार्थक जैन ने व्यक्त किया।