प्रासंगिक : मानव निर्मित त्रासदी और कागज का सिस्टम कितनी जानें और लेगा

दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर में हुई कोचिंग सेंटर की घटना ने तीन होनहार छात्रों की जान ले ली.यह जान किसी प्राकृतिक आपदा के कारण नहीं गई बल्कि मानव निर्मित त्रासदी और कागज के सिस्टम द्वारा भ्रष्टाचार करके दी गई ढील के कारण हुई है.

कोचिंग सेंटर हिंदुस्तान भर में एक जैसी होते हैं या तो कोई वर्टिकल जाते हैं या बेसमेंट में.इस कोचिंग क्लास का बेसमेंट बना, अनुमति पार्किंग की ली गई और उसमें लाइब्रेरी बना दी. जहां पर 30 -35 बच्चे बैठकर पढ़ाई किया करते थे.

हिंदुस्तान के अन्य शहरों की तरह दिल्ली में भी बारिश का पानी ड्रेन करने के लिए नालियां बनी हुई है. इन नालियों पर हमारे स्वार्थी मानव ने कब्जा कर लिया है उनको पाट दिया है.पानी की निकासी को रोक दी.
सड़कों पर अच्छा खासा तालाब थोड़े से पानी में भर जाता है. यह सब शहरों में देखा गया है. हमारा उज्जैन शहर भी अलग नहीं है. थोड़ी बारिश मे में चामुंडा चौराहा, देवास गेट, शहर की घनी व निचली बस्तियों की यही कहानी है. जहां पर एक या दो इंच बारिश में शहर जलमग्न हो जाता है. लोगों के घर में पानी घुसता है.

पर दिल्ली में तो बेसमेंट की बात है.रास्ता नही मिलने पर बारिश के पानी ने जोर मारा और कांच का दरवाजा तोड़कर बेसमेंट में घुस गया. पढ़ाई कर रहे,अपने भविष्य के सपने देख रहे बच्चों को मौका भी नहीं दिया कि भाग कर अपनी जान बचा सके. दरवाजे मे बायोमेट्रिक सिस्टम लगा था. बिजली गई सिस्टम फेल हुआ और बच्चे मौत के मुंह में समा गए.

हमेशा की तरह मीडिया,एमसीडी ,नेता सामने आए मौत का स्यापा करने लगे. आरोप प्रत्यारोप व जाँच का खेल शुरु हो गया. कोचिंग सेंटर सील कर दिया.सब अपनी-अपनी सफाई देने लगे.

भारत भाषा, जाति,क्षेत्र के हिसाब से एक हो ना हो लेकिन म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में भ्रष्टाचार करने के तरीकों में एक रुपता देखने को मिलेगी. म्युनिसिपल बॉडी ही वह चीज है जहां से नए-नए उभर रहे नेता भ्रष्टाचार का ककहरा सीखते हैं.

दिल्ली,बेंगलुरु,कोलकाता,मुंबई सभी जगह के म्युनिसिपल कॉरपोरेशन अपने शहरों की नदियां खा गए, तालाब पाट कर कॉलोनी खड़ी करवा दी. बरसात में जिस तरह का तांडव मुंबई की सड़कों पर देखा जाता है इसका उदाहरण दूसरी जगह शायद कहीं मिले. इस बार दिल्ली में भी इस तरह हुआ. सुप्रीम कोर्ट परिसर और अन्य प्रमुख स्थानों में बारिश का पानी घुसा.यह एक उदाहरण है म्युनिसिपल कारपोरेशन के कार्यकलापों का.

इस देश में बरसो अंग्रेज राज करके गए. उन्होंने कई तरह के प्रशासनिक सुधार किये. इनमें से लॉर्ड रिपन द्वारा 1882 में लोकल सेल्फ गवर्नमेंट स्थापित करना भी था.
अंग्रेज शासन काल में सरदार वल्लभभाई पटेल ने 1924 से 1928 तक अहमदाबाद के मेयर रह कर श्रेष्ठ कार्य किया.वहीं 1930 में कोलकाता के कारपोरेशन के मेयर सुभाष चंद्र बोस थे जो ईमानदारी की मिसाल थे.

नेता, ठेकेदार औऱ भृष्ट अधिकारीयों का गठ जोड़ लोकल सेल्फ गवर्नमेंट को खा गया

देश की नगर पालिकाओं और नगर निगम में निर्वाचित होने वाले नेता अपने-अपने ठेकेदार लेकर आते हैं, अपने अधिकारियों की पोस्टिंग करवाते हैं और चल पड़ती है भ्रष्टाचार की चरखी. इस चरखी में आम आदमी पीसता है. चाहे साफ सफाई का मामला हो, सडक निर्माण का मामला हो. मकान की अनुमति देने का हो,संपत्ति कर वसली का हो या अतिक्रमण हटाने का. बिल्डिंग में फायर सेफ्टी ,विद्युत सुरक्षा जैसे अनिवार्य विषयों के प्रमाण पत्र जारी करना हो.

सरकारे क्या करती है
राज्य सरकारें स्थानीय रेगुलेशन के मामले में पड़ना नहीं चाहती.कभी ऐसे हादसे होते हैं तो एक जाँच अभियान चला कर या एक बयान जारी कर इतिश्री कर लेती है.जैसे दिल्ली के उपराज्यापल ने कह दिया की स्थानीय सरकार ठीक से काम नही कर रही है.
हादसे मे ही इनकी नींद खुलती है.कोई सोचने वाला नहीं की मृत बच्चों के माँ बाप पर क्या गुजर रही होगी.

क्या कर सकते है
बारिश के पहले दिल्ली सहित पूरे देश के शहरों में बारिश के पानी निकासी कैसे होगी इस पर ईमानदारी से लम्बा विचार हो. भवनो की आवश्यक जाँच हो. सबसे बड़ी बात शहरी नदियों,नाले व नाली के अवैध कब्जे को हर साल बिना भेदभाव बारिश के पहले हटाया जाये तो निरापराध लोग मरेंगे तो नही.

 

हरिशंकर शर्मा
स्तम्भ लेखक व ट्रेवल ब्लॉगर