उज्जैन धार्मिक नगरी और प्राचीन इतिहास को भी अपने में समेटे हुए है। भोपाल से धर्मस्व विभाग का मुख्यालय उज्जैन लेकर आना निश्चित ही सूबे के सीएम डॉ. मोहन यादव की ही इच्छा शक्ति और निर्णय का परिणाम है लेकिन इस विभाग का मुख्यालय महाकाल की नगरी में आने के बाद निश्चित ही उज्जैन के इतिहास में नये पृष्ठों का समावेश करेगा। उज्जैन भूतभावन भगवान महाकाल की नगरी है। यहां के अधिपति बाबा महाकाल है तो वहीं सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य हरसिद्धि भी उज्जैन में विराजमान है। बारह वर्षों में एक बार उज्जैन में सिंहस्थ का महा आयोजन होता है और ऐसे में यदि धर्मस्व विभाग का मुख्यालय भोपाल से उज्जैन में लाया जाता है तो इससे बड़े गौरव की बात उज्जैन के लिए क्या हो सकती है।
काल गणना का केंद्र रहा है उज्जैन
उज्जैन प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है जो 5000 साल पुराना है। यह आदि ब्रह्म पुराण में सबसे अच्छा शहर के रूप में वर्णित है और इसे अग्नि पुराण और गरुड़ पुराण में मोक्षदा और भक्ति-मुक्ति कहा जाता है। एक समय था जब यह शहर एक बड़े साम्राज्य की राजधानी रहा था। इस शहर का एक शानदार इतिहास रहा है। धार्मिक पुस्तकों के अनुसार इस शहर ने विनाश के देवता के लिए विनाश को कभी नहीं देखा है, महाकाल स्वयं यहां निवास करते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार सात शहर जो मोक्ष प्रदान कर सकते हैं और उनमें से अवंतिका शहर सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि उज्जैन का महत्व अन्य शहरों की तुलना में थोड़ा अधिक है। उज्जैन का एक बड़ा महत्व वैज्ञानिक रूप से इसका केंद्रीय स्थान है। महाकाल के इस केंद्र में स्थित शहर में ज्योतिष की शुरुआत और विकास हुआ। उज्जैन ने भारत और विदेशी देशों को समय की गणना की प्रणाली प्रदान की है। उज्जैन के इस प्रकार के प्राकृतिक भौगोलिक और ज्योतिषीय महत्व को समझने की आवश्यकता है।
नया इतिहास रचा उज्जैन ने
किसी समय उज्जैन को भले ही पिछड़ा शहर माना जाता रहा हो लेकिन यहां सिंहस्थ आयोजन के नाम पर किसी न किसी रूप से विकास जरूर होते रहे है। वर्ष 2016 में संपन्न हुए सिंहस्थ में बेहतरी से विकास हुआ और अब आगामी सिंहस्थ 2028 के लिए भी मोहन सरकार ने विकास की योजनाएं तैयार कर अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है। भले ही उज्जैन आर्थिक राजधानी नहीं हो या विकासशीलता यहां की तासीर रही हो लेकिन अब धर्मस्व विभाग का मुख्यालय उज्जैन आने के बाद महाकाल की इस नगरी ने नया इतिहास रचा है।