खुसूर-फुसूर शब्दों में 50 हजार का चालान लिखित में 25 का हुआ

दैनिक अवंतिका उज्जैन खुसूर-फुसूर

शब्दों में 50 हजार का चालान लिखित में 25 का हुआ

शहर के फ्रीगंज मध्य क्षेत्र में मरीजों को ठीक करने वाली एक दुकान से निकला कचरा पीछे की और अस्थाई रूप से बने एक दडबे में रखा जाता था। इस दडबे में रखे कचरे से पिछले दिनों बदबू आने लगी और आसपास के रहवासी परेशान हो गए। पहले तो संचालक जी को बताया गया कि ये सब क्या है… इस पर संचालक जी ने कहा कि मेरी जमीन पर बने दडबे में रखा है और ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। सामान्य बात का बतंगड न बनाया जाए। उनके नहीं मानने पर शिकायत निगेहबां  के साथ ही जन्म से लेकर मृत्यु का हिसाब किताब रखने वाली संस्था के आलमबरदारों तक पहुंची थी। फिर क्या था चंद सैनिकों के साथ आलमबरदार मय जेसीबी के यहां पहुंच गए। जाते ही आलमबरदार ने जमकर लू उतारी और कहा कि इनका 50 हजार का चालान बनाओं । जेसीबी से दडबा उडाओं और कचरा भी इन्हीं से साफ करवाओ। एक बिल अलग से पकडाओ। सबके सामने आलमबरदार के शब्दों ने जमकर असर दिखाया। संचालक जी को पसीना निकल आया। धीरे से उन्होंने कहा कि में देख लेता हुं आईए चालान के साथ मेरी बात भी सून लिजिए। आलमबरदार जी संचालक जी के आग्रह को ठुकरा नहीं पाए और संचालक जी के साथ अपने एक प्लाटून कमांडर को लेकर चल दिए । कुछ देर बाद आलमबरदार जी बाहर आते हुए यह कहते गए कि आज ही सब साफ करवा दिजिए और ये कचरा नहीं दिखना चाहिए । बाद में सामने आया कि आलमबरदार जी के 50 हजार के शब्द अंदर जाकर रसीद कट्टे पर लेखन के दौरान 25 हजार में बदल गए । खुसूर- फुसूर है कि आलमबरदार जी के आने के बाद खुली पडी जमीन की पतरों से बाउंड्री भी बन गई और अंदर दडबे के स्थान पर एक अस्थाई कमरे का निर्माण कर दिया गया है। क्षेत्रीय रहवासी भी खुश हैं और आलमबरदार जी के साथ संचालक जी भी। इसे कहते हैं सोने पर सुहागा।