सुसनेर में बन रही गोबर की राखियां की अन्य राज्यों मे हो रही मांग

 

सुसनेर रक्षाबंधन पर राखियो से नवाचार का अंकुर फूट रहा है। परंपरागत रूप से रेशमी और सूती धागो से बनी राखियो से इधर गाय के गोबर मे तुलसी के बीज मिलाकर रक्षासूत्र बनाए जा रहे है। इससे पौधों के साथ भाई बहन का स्नेह भी लहलहाएगा। नगरमे संचालित श्री कृष्ण वैघराज गोमय प्रोडक्ट के संचालक राकेश शर्मा (वैघराज) ने इको फ्रेंडली राखिया बनाकर अनूठी पहल की शुरूआत थी। बतादे की शर्मा के द्वारा गाय के गोबर से निर्मित मुर्तिया, नेम्पलेट, मोबाईल रेडिशन चिप, घड़ी, ब्लड प्रेशर एवं शुगर नियंत्रण रखने वाली चरणपादुका, जाप माला, शेम्पू, साबुन आदि सामग्री भी बनाई जा रही। इसके साथ ही गणेश जी की प्रतिमा भी तैयार की जा रही। गाय से बनी राखियो का निर्माण होने से लोगो को भी चायनीज व पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली राखियो से छुटकारा मिलेगा। इसके अलावा विज्ञान के दृष्टिकोण से हाथ मे गोबर से बनी राखी बाँधने से रेडिएशन से भी सुरक्षा मिलेगी। साथ ही गोबर से बनी राखी पहहने से लोगो मे गोवंश के प्रति आस्था और बढ़ेगी। भारतवर्ष मे प्राचीनकाल मे गोबर की राखी बाँधी जाती थी। अब इसकी जगह चाइनीज राखियो ने ले ली है। चीन से बनकर आने वाली राखियो स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए हानिकारक है। वही गाय के गोबर से बनाई जा रही राखियो के निर्माण से गोबर की महत्ता बढ़ेगी और पर्यावरण के साथ स्वास्थ्य को भी हानि नहीं पहुंचेगी। इस तरह गोवंश की रक्षा भी होंगी और चायना की राखिया कम बिकने से वह आर्थिक रूप से कमजोर होगा।
राखियों में डाले जा रहे तुलसी के बीज
राकेश शर्मा (वैघराज) ने बताया की गाय के गोबर की राखियो की रक्षाबंधन नगर के दो स्थानों पर सस्टॉल लगाकर बिक्री की जाएगी। लोगो मे गायों के प्रति श्रद्धा भाव प्रबल हो इसलिए गोबर और बीज से राखिया बनाई जा रही है। ज्यादातर लोग रक्षाबंधन के कुछ देर बाद राखिया उतार कर इधर उधर फेंक देते है। जिससे भाई बहन के प्यार की प्रतीक राखी कुछ दिन बाद कचरे मे पहुंच जाती है। इसी को देखते हुए राखियो मे तुलसी के बीज डाले जा रहे है। ताकि लोग राखी को इधर उधर फेंकने के स्थान पर गमले मे या घर की बाड़ी मे डाल सकते है। इससे राखी के अंदर भरे गए बीज ऊग कर भाई बहन के पवित्र रिश्ते की याद ताजा करेंगे।