दैनिक अवंतिका उज्जैन खुसूर-फुसूर बहुत दुख हुआ आम श्रद्धालु होने पर

दैनिक अवंतिका उज्जैन

खुसूर-फुसूर

बहुत दुख हुआ आम श्रद्धालु होने पर

हर बार की तरह से नागपंचमी पर्व आया । भगवान के दरबार में सिर झुकाने की लालसा लेकर आसपास ही नहीं देश के कई भागों से श्रद्धालू उज्जैन आया। यहां की व्यवस्था देखकर जी घबराया और मन भर आया। आधुनिकता में जीने वाले समाज की स्थिति यह है कि वह कुछ मीटर पैदल नहीं चल सकता । घर में कुलर , एसी के तहत सुविधाओं की भरमार है। बीपीएल भी कुलर के मजे ले रहा है। ऐसे में दो किलोमीटर की पैदल यात्रा और वह भी चीटी की चाल से , इसमें तो पैरों में मांस पेशियां भर आई। उपर से पानी के लिए दुहाई- दुहाई। अगर किसी श्रद्धालु को इस बीच थोडी सी लघु शंका आई तो उसे टाईम प्लीज करना पडा और उसके बाद किच-किच भी गिफ्ट में थी ही। आम श्रद्धालु के हाल पहली बार ही ऐसे नहीं रहे हैं । सालों से यह व्यवस्था ऐसी ही है। कुछ प्रशासकों ने इस व्यवस्था को सुधारने की कवायद की और आंशिक सफलता मिली। इसके पीछे मुख्य वजह मेहमान हैं। यह मेहमान बिन बुलाए और दोस्ती यारी के हैं। चाहे इसे कोई भी नाम दे दें। कुल जमा व्यवस्था में लगा यह जंग जब तक चलेगा सुधार की गुंजाईश कम ही है। कोई उपर से मेहमान है कोई प्रशासन का तो कोई वर्दी का तो कोई चौथे स्तंभ का तो कोई पासधारी मेहमान हैं। अब इतने मेहमान बार-बार व्यवस्था में आएंगे । मंदिर के नजदीक से लाईन में घूस जाएंगे तो कतार में लगा आम श्रद्धालु तो चीटी की चाल से ही भगवान की और बढेगा ही। उसके दर्शनों के दौरान ही पल भर का समय रहेगा। शेष मेहमान आएंगे , पुरी तरह से भगवान को निहारेंगे। मन और भाव के दर्शन कम करेंगे,दर्शन ज्यादा करवाएंगे। खुसूर-फुसूर है कि आम श्रद्धालु होना भी मानव जीवन में एक प्रकार से कर्मों का दंड भोगने जैसा ही है। वो समय गया जब इसे श्रद्धा का मापदंड माना जाता था । वैसे आम श्रद्धालु इतने सब के बाद भी भाव लिए इंतजार करता रहा और पल भर में भगवान को निहार कर धन्यवाद प्रभू कर निकल गया। उसे व्यवस्थाओं से कोई लेना देना नहीं था उसे घंटों बाद प्रभू के दर्शन हुए तो वह प्रफुल्लित हो गया।