अध्यात्म हमें हमारे स्वयं को जानने की कला का नाम है
किसने कहा कि अध्यात्म कठिन है! अध्यात्म सरल से सरलतम बात है, संसार में कोई भी कितना कठिन कार्य हो हम कर लेते हैं क्योंकि उसके करने में हमारे अहंकार को बड़ा रस मिलता है। अध्यात्म हमें हमारे स्वयं को जानने की कला का नाम है। जिसको बिना सरल हुए नहीं पाया जा सकता है।इस संबंध में सद्गुरु ओशो के एक प्रवचन से और अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
यदि आप आध्यात्मिकता की ओर मुड़ना चाहते हैं, तो कुदरती तौर पर आप जीवन के एक बड़े हिस्से की चाह करते हैं। बल्कि आप जीवन में जिस चीज को भी पाने की कोशिश करते हैं, वह जीवन का एक बड़ा हिस्सा पाने की कोशिश होती है। एक मूलभूत कारण आपका प्रारब्ध है, मतलब इस जीवन के लिए आपको जो कर्म मिले हैं। सृष्टि बहुत करुणामयी है। ईश्वरीय आनंद की अनुभूति करने का मार्ग ही अध्यात्म है। अध्यात्म व्यक्ति को स्वयं के अस्तित्व के साथ जोड़ने और उसका सूक्ष्म विवेचन करने में समर्थ बनाता है। वास्तव में आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि व्यक्ति अपने अनुभव के धरातल पर यह जानता है कि वह स्वयं अपने आनंद का स्रोत है। आध्यात्मिकता का संबंध हमारे आंतरिक जीवन से है। आध्यात्मिकता की कोई एकल, व्यापक रूप से सहमत परिभाषा नहीं है। विद्वानों के शोध में उपयोग किए जाने वाले शब्द की परिभाषा के सर्वेक्षण, सीमित ओवरलैप के साथ परिभाषाओं की एक विस्तृत श्रृंखला दिखाते हैं।
यह सब कुछ प्रकृति का है, अपना कुछ भी नहीं
मनुष्य जीवन में उच्चता की तरफ बढ़ना तब प्रारंभ कर देता है जब उसके विचार सुदृढ़ और संकल्प श्रेष्ठ होते हैं। जब उसे यह समझ में आ जाए कि यह सब कुछ प्रकृति का है, अपना कुछ भी नहीं। इसलिए जो कुछ करना है, वह मानवता की सेवा और रक्षा के लिए करना है। शोषण और सेवा, आसक्ति व विरक्ति स्वार्थ और जनहित दोनों के धरातल पर अपने व्यक्तित्व से अलग हटकर जिस किसी ने भी मानवता के लिए, राष्ट्रहित के लिए अपना अस्तित्व मिटाकर काम किया है वह सदैव महान बना है। युगों तक ऐसे महान लोगों को पूजा जाता है। आपका निर्माण ही संपूर्ण प्रकृति के अवयवों से हुआ है। जो परमात्मा का दिया हुआ एक अनुदान है। कुछ पल के लिए प्रकृति पुन: उसे अपने में समेटकर विलय कर लेती है। परंतु आपका किया हुआ कर्म पुन: उसे प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। नूतन का निर्माण करने में कर्म ही सहयोग करता है, बाकी सभी कुछ अतीत में डूब जाता है। अपने कर्मो को सुधारकर इसका लेखा-जोखा जरूर करें। अपने झूठे अहंकार को कायम रखने के लिए मानवता का गला न घोंटें। इसे ढोकर आप कहां ले जाएंगे? जो मेरा दिखता है, वस्तुत: वह मेरा है नहीं। अपनी शक्तियों को जाग्रत कर स्वयं को पहचानने का प्रयास करें। आज का मानव कहीं न कहीं भटक गया है। जो भीतर से जगा है, जिसने अपने आपको समझ लिया है वह भटक नहीं सकता है।