आज चौथी सवारी, चार स्वरूपों के दर्शन होंगे -पालकी में भगवान श्री चन्द्रमोलेश्वर , हाथी पर श्री मनमहेश, गरूड रथ पर श्री शिव तांडव, नंदी रथ पर श्री उमा महेश करेंगे नगर भ्रमण

उज्जैन । श्री महाकालेश्वर भगवान की श्रावण-भादों माह में निकलने वाली सवारी के क्रम में श्रावण माह के चतुर्थ सोमवार को भगवान चार स्वरूपों में भक्तों को दर्शन देंगे। भगवान श्री महाकालेश्वर चौथे स्वरूप में बैलगाड़ी पर नंदी पर विराजमान होकर श्री उमा-महेश स्वरूप में अपने भक्तों को दर्शन देने निकलेंगे। पालकी में भगवान श्री महाकालेश्वर श्री चन्द्रमोलीश्वर स्वरूप में विराजित रहेंगे और हाथी पर श्री मनमहेश, गरूड रथ पर श्री शिव तांडव प्रतिमा, नंदी रथ पर श्री उमा महेश जी के मुखारविंद विराजित होकर नगर भ्रमण पर निकलेंगे।

श्री महाकालेश्वर मंदिर के सभामंडप में विधिवत भगवान श्री चन्द्रमोलेश्वर का पूजन-अर्चन होने के पश्चात अपनी प्रजा के हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलेंगे। मंदिर के मुख्य द्वार पर सशस्त्र पुलिस बल के जवानों के द्वारा पालकी में विराजित भगवान श्री चन्द्रमोलेश्वर को सलामी देंगे। उसके पश्चात परंपरागत मार्ग से होते हुए सवारी क्षिप्रातट रामघाट पहुचेगी। जहॉ पर भगवान महाकाल का क्षिप्रा के जल से अभिषेक एवं पूजा-अर्चन की जावेगी। पूजन-अर्चन के बाद सवारी निर्धारति मार्गों से होते हुए पुनः श्री महाकालेश्वर मंदिर पहुंचेगी।सीधी के घसिया बाजा नृत्य दल होगा सम्मिलितश्री महाकालेश्वर भगवान की चौथे सोमवार की सवारी में भी  मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की मंशानुरूप जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद के माध्यम से भगवान श्री महाकालेश्वर की सवारी में जनजातीय कलाकारों का दल सहभागिता करेगा। 12 अगस्त को घासी जनजातीय घसिया बाजा नृत्य सीधी के उपेन्द्र सिंह के नेतृत्व में  इनका दल श्री महाकालेश्वर भगवान की चौथी सवारी में  पालकी के आगे भजन मंडलियों के साथ अपनी प्रस्तुति देते हुए चलेगा।विंध्य मेकल क्षेत्र का प्रसिद्ध घसिया बाजा सीधी के बकबा, सिकरा, नचनी महुआ, गजरा बहरा, सिंगरावल आदि ग्रामों में निवासरत घसिया एवं गोंड जनजाति के कलाकरों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य की उत्पत्ति के संबंध में किंवदंती है कि यह नृत्य शिव की बारात में विभिन्न वनवासियों द्वारा किए जा रहे करतब का एक रुप है। जिस तरह शिव की बारात में दानव, मानव, भूत-प्रेत, भिन्न भिन्न तरह के जानवर आदि शामिल हुए थे। कुछ उसी तरह इस नृत्य में भी कलाकारों द्वारा अनुकरण किया जाता है। इस नृत्य के कलाकार इसे 12 अलग अलग तालों में पूरा करते है |  यह  गुदुम बाजा, डफली, शहनाई, टिमकी, मांदर, घुनघुना वाद्य यंत्रो का उपयोग करते है। साथ ही इनकी वेशभूषा बंडी, पजामा, कोटी आदि होती है।