नाइट शिफ्ट करने वालों सावधान! नींद की कमी दे सकती है कैंसर की बीमारी

शहरी जीवन में कई लोग नाइट शिफ्ट करते हैं. दूसरी ओर कई तरह की मजबूरियां और कई गंदी आदतों की वजह से भी आजकल लोगों को देर रात तक जागने की आदत है. यदि आप भी इनमें से एक हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि रात में अपनी नींद खराब करना कैंसर की वजह भी बन सकता है. यह बात एक रिसर्च में सामने आई है. दरअसल, इसके पीछ हमारा एक हार्मोन जिम्मेदार है. इस हार्मोन के कारण हमरा बायोलॉजिकल क्लॉक खराब हो जाता है. जब बायोलॉजिकल क्लॉक खराब होता है तब ब्रेस्ट, कोलोन, ओवरीज और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. इतना ही नहीं इससे पूरे शरीर पर असर पड़ता है.

सर्वोदय अस्पताल, नई दिल्ली में ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर और कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश पेंढाकरकर ने बताया कि मेलाटोनिन एक हार्मोन होता है. मेलाटोनिन हार्मोन रात के समय ज्यादा रिलीज होता है. यह दिमाग से निकलता है और पूरे शरीर को रिलेक्स पहुंचाता है और नींद की गहराई में धकेल देता है. यह हार्मोन तब ज्यादा रिलीज होता है जब अंधेरा हो जाता है. दुर्भाग्य से आजकल अधिकांश लोग देर रात तक दुधिया रोशनी में नहाते रहते हैं. इस वजह से भी मेलाटोनिन हार्मोन कम बनने लगे हैं. मेलोटोनिन हार्मोन का काम सिर्फ नींद ही दिलाना नहीं है बल्कि यह शरीर के सर्केडियन लय को नियंत्रित करता है. अगर सर्केडियन लय गड़बड़ाता है तो इससे पूरी बॉडी में हलचल मच जाती है. स्टडी में पाया गया है कि शरीर में मेलाटोनिन लेवल और कोलोरेक्टल, प्रॉस्टेट, ब्रेस्ट, गैस्ट्रिक, ओवेरियन, लंग और ओरल कैंसर के बीच एक सीधा लिंक है. दरअसल, रात में मेलाटोनिन का प्रोडक्शन जब रिलीज होता है वह सोने या नींद आने का सामान्य समय होता है लेकिन यदि किसी न किसी वजह से आप ठीक से नींद नहीं लेंगे तो शरीर में मेलाटोनिन की मात्रा कम होने लगती है. इससे कई प्रकार के कैंसर को बढ़ावा मिलता है. इसलिए जो लोग नाइट शिफ्ट की जॉब करते हैं, उनमें कैंसर का खतरा बढ़ा हुआ रहता है स्टडी में पाया गया कि मेलाटोनिन हार्मोन और कैंसर के बीच कई तरह के सीधा संबंध है. मेलाटोनिन दिन की रोशनी में शिथिल रहता है लेकिन अंधेरे में इसका प्रोडक्शन बढ़ जाता है. मेलाटोनिन कैंसर के खिलाफ इम्यून रिस्पॉन्स को एक्टिव कर देता है जिसके कारण यह कैंसर सेल्स को नष्ट कर देता है, इससे मेटास्टेटिस यानी शरीर में कैंसर फैलने की क्षमता कम हो जाती है. सबसे बड़ी बात यह है कि मेलाटोनिन कोशिकाओं के अंदर डीएनए में टूट-फूट की मरम्मत करता है. दरअसल, कैंसर कोशिकाएं तब पनपती है जब डीएनए टूटकर बिखरने लगता है. इसी का फायदा उठाकर कैंसर कोशिकाएं बढ़ने लगती है और फैलने लगती है. मेलाटोनिन का अगर सही से प्रोडक्शन हो तो डीएनए के टूटने पर उसका तुरंत मरम्मत कर देता है. यही कारण है आजकल मेलाटोनिन थेरेपी से कैंसर का इलाज भी किया जाता है.

नींद के लिए क्या करें
डॉ. दिनेश पेंढारकर ने कहा कि हमारे लिए सबसे जरूरी है कि शरीर का सिर्केडियन लय सही से चले. हर दिन सात से आठ घंटे सोने की कोशिश करें. अच्छी और गहरी नींद जरूरी है. सोने से पहले कमरे की लाइट बंद कर दें और मोबाइल का इस्तेमाल बिल्कुल न करें क्योंकि इससे निकलने वाली ब्लू लाइट भी आंखों को नुकसान पहुंचाने के साथ मेलाटोनिन के प्रोडक्शन को भी अपसेट करता है. कमरे में सोने का अच्छा माहौल बनाएं, क्योंकि नींद की क्वांटिटी के साथ इसकी क्वालिटी भी बहुत मायने रखती है. कमरे में शांति हो, कम रोशनी हो और रिलेक्स फील हो, ऐसा माहौल बनाएं.

 

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