तीर्थ नगरी से पर्यटन नगरी की और निरंतर बढता शहर सामग्री / सेवा घटी ,सिमटी, दाम जमकर बढे -मुल्य नियंत्रण की स्थिति में कोई काम नहीं, होटलों,स्टे होम पर लगाम नहीं

दैनिक अवंतिका उज्जैन । तीर्थनगरी से पर्यटन नगरी की और निरंतर आगे बढ रहे शहर में सामग्री और सेवा का स्तर घट और सिमट गया है इसके उलट दाम जमकर बढ रहे हैं। यह स्थिति शहर के पुराने हिस्से में खास स्थानों पर मंदिरों के आसपास ज्यादा देखी जा रही है। मुल्य नियंत्रण की स्थिति में कोई काम नहीं हो रहा है यहां तक की होटलों स्टे होम पर लगाम नहीं है। ई-रिक्शा की लूट बरकरार है।स्कंद पुराण के अवंति खंड के अध्याय 40 में कनकश्रृंगा नगरी के नाम से उल्लेखित उज्जैन अपनी धार्मिकता को लेकर तीर्थ नगरी है। यहां सप्त सागर, 9 नारायण,84 महादेव हैं तो काल जिनके अधीन हैं ऐसे भगवान श्री महाकाल 12 ज्योर्तिलिंग में से यहां हैं। देश की सात पुरानी नगरियों में इसका नाम उल्लेखित है। तीर्थनगरी अब पर्यटन की और अग्रसर होती जा रही है। इसके चलते शहर में खाद्य सामग्री से लेकर सभी प्रकार की सेवा की स्थिति सिमट गई है और दाम बराबर बढते जा रहे हैं। किसी पर्यटन स्थल की तरह ही यहां दामों पर नियंत्रण जैसा कुछ नहीं है।औद्योगिक नगरी का दर्जा भी रहा- करीब 4दशक पूर्व शहर औद्योगिक नगरी का दर्जा भी रखता था। यहां की कपडा मिलों का कपडा निर्यात किया जाता था। उच्च क्वालिटी का लट्ठा यहां बनाया जाता था। एक से एक कपडा मिल यहां संचालित होती थी। इन मिलों के बंद होने के उपरांत शहर मंदी के दौर में काफी समय रहा है। तीर्थ क्षेत्र होने के कारण शहर में श्रद्धालुओं की आवाजाही सतत रही। इसके चलते शहर की राजस्व स्थिति कमजोर ही सही लेकिन बनी रही।महाकाल लोक से आया बूम-वर्ष 2022 में भगवान श्री महाकालेश्वर मंदिर से लगे रूद्रसागर क्षेत्र में महाकाल लोक का निर्माण किया गया। इसके बाद से शहर में हर क्षेत्र में ही बूम की स्थिति बन गई। पहले प्रतिदिन 25-40 हजार तीर्थ यात्री आते थे , उनकी संख्या बढकर 4 गुना से अधिक हो गई है। इसके चलते शहर के पुराने हिस्से के महाकाल झोन में जमकर धन वर्षा हो रही है। इसके साथ ही मंदिरों के शहर में प्रमुख मंदिरों के धर्म-कर्म,जलपान,परिवहन एवं अन्य व्यवसाय जोर पकड गए हैं।स्तर घटा,दाम बढे-शहर में दिन प्रति दिन ऐसे स्थान जहां बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या अधिक रहती है उन क्षेत्रों में सामग्री और सेवा का स्तर और निरंतर घटता जा रहा है। इसके एवज में दाम बराबर बढ रहे हैं। हाल यह हैं कि भगवान श्री महाकाल मंदिर के बाहर फूल प्रसादी में 100 ग्राम वजन की चिरोंजी का प्रसाद 60 रूपए में और हार के साथ सीधे 100 रूपए में श्रद्धालुओं को पकडाया जा रहा है। चाय के डिस्पोजल छोटे हो गए हैं और दर 10 रूपए प्रति डिस्पोजल कर दी गई है। होटलों के दडबेनुमा कमरों को डबल बेड का नाम देकर 12 घंटे के लिए 1200 से 1500 सौ रूपए वसूल किए जा रहे हैं। मंदिर के आसपास के क्षेत्रों में घरों में खोले गए स्टे होम में 500 से 1000 हजार रूपए तक का किराया वसूला जा रहा है। हरसिद्धि मंदिर के पास भी यही हाल बने हुए हैं। आसपास के जलपान गृह में पोहे की मात्रा कम हो गई है और दाम में बढी हुई दर ली जा रही है। खाने की गुणवत्ता के मान से उच्च दाम वसूली हो रही है जिसका कोई मापदंड नहीं है। यहां तक की थ्री स्टार होटल के मान से प्रति प्लेट सब्जी के दाम लगाए जा रहे हैं। इसके साथ ही गुणवत्ता भी कमजोर रखी जा रही है।अन्य मंदिरों के आसपास भी यही हाल-शहर के अन्य प्रमुख मंदिरों और स्थलों में काल भैरव,सिद्धवट,गढकालिका,भृर्तहरि गुफा सहित सांदीपनी आश्रम एवं अन्य स्थलों पर धीरे धीरे यही स्थिति बन रही है। गढकालिका में मंदिर समिति की दुकानों से ही प्रसादी और हार फूल में मनमाने दाम लिए जा रहे हैं। आए हुए श्रद्धालुओं के मान से यहां दाम तय हो रहे हैं। दक्षिण भारत से आने वाले श्रद्धालुओं को बाजार में मिलने वाला 12-15 रूपए दर का हल्का नारियल 30 रूपए नग में पकडाया जा रहा है। प्रसाद की सामान्य पुडिया 20 रूपए और गेंदे का हार 40 रूपए के साथ गुलाब के दो फूल का दाम 10 रूपए वसूला जा रहा है। इस तरह से श्रद्धालुओं की जेब हल्की की जा रही है। कालभैरव मंदिर पर भगवान को मदिरा का भोग लगता है। इसके लिए शासन स्तर पर वहां आबकारी विभाग ने एक सेल काउंटर शुरू किया हुआ है। इस सेल काउंटर को यहां के व्यक्तिगत दुकानदार दिखने नहीं देते हैं और श्रद्धालुओं को देशी मदिरा का 65 रूपए का क्वार्टर सीधे 100 रूपए में पकडाया जा रहा है। इसके साथ प्रसादी और फूल लेने पर सीधे यह 150 एवं काली डोरी और सूर्य मुख लेने पर सीधे 200 रूपए का पैकेज तैयार कर दिया जाता है। भृर्तहरि गुफा ,सिद्धवट क्षेत्र में भी यही हाल हैं।नगर परिवहन में मनमाना पैसा वसूली-नगर परिवहन के नाम पर चल रहे वाहनों में भी जमकर मनमानी चल रही है। श्रद्धालुओं से मनमाना पैसा वसूला जा रहा है। पर्यावरण सुधार के लिए चलाए गए ई-रिक्शा ने शहर का यातायात पुरी तरह से प्रदुषित किया हुआ है। इसके साथ ही श्रद्धालुओं की जेब हल्की करने में भी इनका कोई सानी नहीं है। नए शहर से पुराने शहर में आने के नाम पर ये मात्र 80-100 रूपए लेते हैं इसके उलट पुराने शहर से नए शहर के कालोनी क्षेत्रों में जाने के 200 रूपए तक वसूले जा रहे हैं। अन्य प्रदेशों के श्रद्धालुओं को प्रमुख स्थल भ्रमण करवाने के नाम पर 1500 से 2000 रूपए तक वसूले जा रहे हैं। इसमें कालभैरव मंदिर पर लगने वाले घंटों का इंतजार प्रभार भी लगाया जा रहा है।धर्मशालाओं में बढी दर-श्रद्धालुओं की आवकों को देखते हुए सामाजिक व्यक्तियों की सेवा में लगी धर्मशालाओं में भी दरों की वृद्धि कर दी गई है। कई धर्मशालाओं में इसके लिए कुछ सुविधाएं जुटाई गई हैं और अधिक दर ली जा रही है तो कुछ में तो पुरानी सुविधाओं पर ही नई दर वसूली का क्रम शुरू कर दिया गया है। क्षेत्र में अधिकांश धर्मशालाओं में यहीं हाल जारी है।अब तक ये हुई कवायद-प्रशासन ने होटलों पर दर सूची लगवाई लेकिन उसे छुपाने में संचालक एवं मैनेजर तमाम तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके साथ ही अन्यानेक तरीके से श्रद्धालुओं से पैसा लिया जा रहा है। स्टे होम पर भी दर का निर्धारण नहीं हो रहा है। जलपान गृहों पर भी अपने मन के मालिक हैं। प्रसाद वाले भी इसी हाल के हैं। ई-रिक्शा/ आटो रिक्शा बुकिंग के लिए पुलिस की और से प्री पेड बूथ पर्याप्त प्रचार प्रसार के अभाव में चल रहे हैं। प्रशासनिक दल महीनों में होटलों ,लाजों,स्टे होम पर जांच के लिए पहुंच रहा है लेकिन कार्रवाईयां कमजोर हैं।

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