खुसूर-फुसूर आपदा में अवसर के बाद समस्या शिकायत निराकरण में अवसर

दैनिक अवंतिका उज्जैन

खुसूर-फुसूर

आपदा में अवसर के बाद समस्या शिकायत निराकरण में अवसर

आपदा में अवसर एवं अभियानों में अवसर तो तलाशें ही जाते हैं। अब तो किसी की मजबूरी,समस्या और शिकायत के भी निराकरण में अवसर तलाश कर लाभ लिया जा रहा है। ऐसे एक दो नहीं अन्यानेक मामले सूने जा रहे हैं। पानी की समस्या हो तो वहां अवसर , कब्जा हो गया हो तो वहां अवसर , नल जल योजना बंद है तो वहां भी संबंधितों का अवसर,  रास्ता बन्द हो जाए तो उसमें खुलवाने का अवसर ,अवैध उत्खनन के मामलों को निपटाने में अवसर ,शासकीय भूमि से अतिक्रमण हटाने में अवसर ,शासकीय भूमि को गोचर के लिये मुक्त कराने में अवसर सहित अन्यानेक प्रकार के मामलों में अवसर की तलाश ही अब रहने लगी है। निदान से परे यह अवसर अब हर कार्रवाई पर भारी होता जा रहा है। इस अवसर में मालवा की कहावत अनुसार लाडे को भी नहला दिया जाता है और लाडी को भी। ऐसा ही कुछ प्रति सप्ताह मंगलवार को लगने वाले मजमें में भी हो रहा है। समस्या , शिकायत करने आवेदक आता है । कई मामलों में तो दस-दस आवेदन दिए गए लेकिन निदान की हालत सालों बाद भी नहीं है। अब तक दर्ज कुल मामलों और निराकरण का प्रतिशत निकाला जाए तो हालातों की स्थिति बयां कर देगी की यहां भी निदानकर्ताओं ने अवसर तलाश लिए । निर्देश देने वाले ने तो स्पष्ट रूप से निराकरण के निर्देश दिए थे लेकिन निदानकर्ता ने दोनों पक्षों को नहला दिया। खुसूर-फुसूर है कि अगर मंगलवार को होने वाले कार्यक्रम में ही निदान हो जाता तो फिर आगर रोड से लेकर कोठी तक नए संवाद का मामला नहीं आ पाता। पहले मंगलवार को आवेदन दिया था अब संवाद में भी दे दिया लेकिन चिंटी भी नहीं रेंगी है। अब तो कागज पर भी अवसर तलाश लिए गए हैं। इसकी भी जहां रद्दी इकट्ठी हो रही हो वह भी कुछ लोगों के लिए अवसर हो सकती है।