मप्र आज विकास का रोल मॉडल बनकर उभर रहा
दो दशक पहले बीमरू राज्य में शामिल मप्र आज विकास का रोल मॉडल बनकर उभर रहा है। खासकर जबसे डॉ. मोहन यादव ने मप्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली है, उन्होंने मप्र को विकास का नया मॉडल बनाने का अभियान शुरू कर दिया है। इसके लिए उनका प्रदेश के हर हिस्से में एक समान विकास पर फोकस है। इसके लिए उन्होंने मंत्रियों, विधायकों, सांसदों को जिम्मेदारी तो दी ही है, वहीं अफसरों को भी फ्री-हैंड देकर काम पर लगाया है।
सरकार की ऐसी ही नीतियों और रणनीति का परिणाम है कि आज मप्र अब बीमरू राज्य नहीं रहा। देश के टॉप-10 धनी राज्यों में इसकी गिनती होने लगी है। 13.87 लाख करोड़ रुपए की जीडीपी के साथ अर्थव्यवस्था के मामले में देश में 10वें नंबर पर आ चुका है। तरक्की का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मप्र 9वें नंंबर पर काबिज तेलंगाना से बस 1 पायदान पीछे है। मप्र सरकार प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र को विकास का मॉडल बनाएगी। यानी हर विधानसभा क्षेत्र में आवश्यक सुविधाओं के साथ ही वह सारी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी, जो वहां के निवासियों में गर्व का भाव भर सके। इसके लिए सरकार विधानसभा क्षेत्र की जरूरत के हिसाब से योजना बना रही है। इसके लिए हर विधानसभा क्षेत्र में 100 करोड़ रूपए के विकास कार्य कराए जाएंगे। जानकारी के अनुसार सरकार ने विधायकों से अपने विधानसभा क्षेत्र में कराए जाने वाले विकास कार्यों का प्रस्ताव मांगा है। विधायकों से प्रस्ताव मिलने के बाद सरकार आगामी चार साल में विकास कार्यों को अमलीजामा पहुंचाने पर काम करेगी। गौरतलब है की मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का पूरा फोकस प्रदेश में एक समान विकास पर है। इसके लिए वे रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का आयोजन किया जा रहा है। दरअसल, सरकार की कोशिश है कि चार साल में विधानसभा क्षेत्रों कोआदर्श बनाया जाए। स्कूल, बिजली, पानी, सडक़, नाली, सामुदायिक भवन, आंगनबाड़ी केंद्र समेत सभी सुविधाएं होंगी। केंद्र और राज्य सरकार की सभी योजनाओं से पात्रों को लाभांवित किया जाएगा। रोजगार के लिए मेलों का आयोजन होगा तो खेलकूद की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के साथ गोवंश के सरंक्षण और पर्यटन की गतिविधियों के विकास पर ध्यान दिया जाएगा। मुख्यमंत्री कार्यालय ने विधायकों से विधानसभा क्षेत्र के विकास संबंधी दृष्टि पत्र मांगा है। इसे तैयार करने के लिए प्रारूप भी भेजा गया है। योजना में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 100 करोड़ रुपये व्यय किए जाएंगे। मप्र में सरकार चाहती है की प्रदेश के विकास में सबकी भूमिका हो।
इसके लिए सरकार ने तय किया है कि विधानसभा क्षेत्रों को आदर्श बनाया जाएगा। इसके लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से दी जाने वाली राशि के साथ विधायक, सांसद निधि और कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी का उपयोग किया जाएगा। जो राशि और लगानी होगी, वह सरकार अपने वित्तीय संसाधनों से लगाएगी। मुख्यमंत्री कार्यालय ने सभी विधायकों को दृष्टि पत्र का प्रारूप भेजा है। इसमें बताया गया कि दृष्टि पत्र तैयार करते समय विधायक क्षेत्र की महत्वपूर्ण समस्याओं का आकलन करें। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तीकरण, आंगनबाड़ी, कौशल विकास, पेयजल, पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, यातायात, गोवंश संरक्षण, पर्यटन, रोजगार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए कार्य प्रस्तावित करें। एक जिला-एक उत्पाद योजना के माध्यम से कैसे रोजगार के अवसर सृजित किए जा सकते हैं, इस पर विचार अवश्य किया जाए। साक्षरता की दर बढ़ाने, शिशु एवं मातृ स्वास्थ्य में सुधार, कुपोषण में कमी लाने, स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए भी कार्ययोजना बनाई जाएगी। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव से पहले सरकार ने विधायकों से 15-15 करोड़ रुपये के क्षेत्र में विकास से संबंधित प्रस्ताव मांगे थे। अधिकतर सदस्यों ने सडक़, पुल-पुलिया, सामुदायिक भवन आदि के प्रस्ताव दिए थे, जिन्हें विभिन्न योजनाओं में सम्मिलित कर काम स्वीकृत कराए गए। विधानसभा क्षेत्र के लिए बनने वाली कार्ययोजना में केंद्र और राज्य सरकार की सभी हितग्राहीमूलक योजनाओं को शामिल किया जाएगा। सभी पात्र व्यक्तियों को योजनाओं का लाभ दिलाने के साथ अपात्रों को चिह्नित करने का काम भी होगा। दृष्टि पत्र के माध्यम से जो लक्ष्य निर्धारित किए जाएंगे वे दो और चार वर्ष की अवधि के लिए होंगे। दृष्टि पत्र के माध्यम से विधानसभा क्षेत्र के विकास के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए जाएंगे, उनकी पूर्ति के लिए जिम्मेदारी भी तय होगी। प्रगति की नियमित जिला और राज्य स्तर पर समीक्षा की व्यवस्था रहेगी। योजना के लिए आवंटित धन का उपयोग पारदर्शी तरीके से किया जाएगा और लेखा-जोखा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध भी कराया जाएगा। सरकार प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 100 करोड़ रुपये के काम कराने के लिए राशि की व्यवस्था अलग-अलग मदों से करेगी। इसमें 40 करोड़ रुपये की व्यवस्था विधायक निधि, सांसद निधि, जनभागीदारी, कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी और पुनर्घनत्वीकरण से की जाएगी। शेष 60 करोड़ रुपये सरकार अपने खजाने से देगी। प्रतिवर्ष 15-15 करोड़ रुपये दिए जाएंगे।