खुसूर-फुसूर प्रबंध समिति सदस्य हैं क्या ?
खुसूर-फुसूर
प्रबंध समिति सदस्य हैं क्या ?
मंदिरों के धार्मिक शहर में शासनाधीन सभी मंदिरों का संचालन प्रबंध समितियों के माध्यम से किया जा रहा है। विधान अनुरूप इन समितियों पर पदेन रूप से अध्यक्ष शासकीय राजस्व विभाग के प्रमुखों को बनाया गया है। धर्मस्व विभाग समिति में अशासकीय सदस्यों की नियुक्ति करता है। इनकी संख्या मंदिर के मान से रहती है। पिछले लंबे समय से प्रमुख मंदिर एवं अन्य शासनाधीन मंदिरों में अव्यवस्था का स्वरूप सामने आ रहा है। किसी न किसी मुद्दे पर आए दिन मिडिया की सुखियां धर्म स्थल पर रही हैं। प्रबंध समिति के अशासकीय सदस्यों की नियुक्ति के पीछे एक ही उद्देश्य है कि प्रशासनिक एवं स्थानीय स्थितियों में संवाद,सामंजस्य एवं सहयोग बना रहे । इसके पीछे की जाने वाली व्यवस्थाओं में श्रद्धालुओं की सुविधा एवं दुविधा के मसले का अशासकीय सदस्य सामने रखकर उनका निदान करवाने में सेतु का काम करेंगे। इसके विपरित लंबे समय से देखने में आ रहा है कि अशासकीय सदस्य चुप्पी साधे हुए हैं। प्रमुख मंदिर के साथ ही अन्य मंदिरों में भी यही हाल बने हुए हैं। एक भी मसले पर न तो सार्वजनिक रूप से और न ही प्रबंध समिति की बैठकों में ही विकृतियों के मसले उठाने की बात सामने आती है। निरंतर रूप से एक के बाद एक विकृति सामने आने पर भी यह चुप्पी सवाल ही खडे नहीं कर रही व्यवस्था पर प्रश्नचिंह भी लगा रही है इसके बाद भी यही स्थिति रहना काबिले सवाल है। खुसूर-फुसूर है कि प्रबंध समितियों में शामिल होना ही सबसे बडा काम होता है उसके बाद अपने काम होते हैं । यही सबसे बडा काम होता है। आम श्रद्धालु एवं उनके लिए की जा रही व्यवस्था का मसला प्रशासनिक पाले में रहता है। विकृत व्यवस्था का निदान एवं श्रद्धालुओं के लिए संवाद,संपर्क एवं समन्वय की बात तो तब की जाए जब श्रद्धालुओं के लिए प्रबंध समिति सदस्य हैं क्या ?