इस बार बंधी है उम्मीद कि कालिदास समारोह नहीं बनेगा महज औपचारिक
पहले भी आते रहे है राष्ट्रपति, अभी से हो प्रयास तो बन सकती है फिर से संभावना
-स्थानीय कलाकारों को भी मिले प्राथमिकता, विद्वानों से ली जाए सलाह
-स्थानीय कलाकारों को भी मिले प्राथमिकता, विद्वानों से ली जाए सलाह
कालिदास समारोह समारोह 12 से 18 नवंबर तक होगा
उज्जैन। इस बार आयोजित होने वाले अखिल भारतीय कालिदास समारोह को लेकर उम्मीद बंधी है कि यह समारोह महज औपचारिक बनकर नहीं रहेगा। इसके पीछे कारण यह है कि सरकार ने न केवल स्थानीय समिति का गठन कर दिया है वहीं स्थानीय समिति की बैठक भी कल शनिवार 24 अगस्त को कालिदास अकादमी में आहूत की जा रही है और इसमें संस्कृति मंत्री भी शिरकत कर रहे है।
अखिल भारतीय कालिदास समारोह की यदि बात करें तो यह आयोजन उज्जैन के लिए हमेशा से
ही प्रतिष्ठापूर्ण बना रहा है वहीं इसका पुराना इतिहास उठाकर देखा जाए तो इसके शुभारंभ अवसर पर राष्ट्रपति आते रहे है लेकिन बीते कुछ वर्षों से समारोह का शुभारंभ या तो किसी विद्वान के हाथों होता रहा है या फिर प्रदेश स्तर के मंत्री ही आयोजन का शुभारंभ करते रहे है। दावे भले ही किए जाते रहे हो कि समारोह में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को न्योता दिया जाएगा लेकिन समारोह की तैयारी करने की शुरुआत ही आयोजन शुरू होने के चंद दिनों पहले होती है वहीं निमंत्रण कार्ड भी ऐन वक्त पर छपकर बंटते है तो फिर ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को न्यौता देना या उनका आना संभव ही नहीं रहता है। स्थिति तो यह बन जाती है कि निमंत्रण कार्ड ऐन वक्त तक बंटते रहते है या फिर संबंधितों तक पहुंचने तक नहीं है। जिस तरह से समारोह की तैयारियां अभी से दिखाई दे रही है यदि अभी से ही शासन स्तर पर प्रयास किया जाए तो समारोह के शुभारंभ पर निश्चित ही राष्ट्रपति के आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
अखिल भारतीय कालिदास समारोह की यदि बात करें तो यह आयोजन उज्जैन के लिए हमेशा से
ही प्रतिष्ठापूर्ण बना रहा है वहीं इसका पुराना इतिहास उठाकर देखा जाए तो इसके शुभारंभ अवसर पर राष्ट्रपति आते रहे है लेकिन बीते कुछ वर्षों से समारोह का शुभारंभ या तो किसी विद्वान के हाथों होता रहा है या फिर प्रदेश स्तर के मंत्री ही आयोजन का शुभारंभ करते रहे है। दावे भले ही किए जाते रहे हो कि समारोह में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को न्योता दिया जाएगा लेकिन समारोह की तैयारी करने की शुरुआत ही आयोजन शुरू होने के चंद दिनों पहले होती है वहीं निमंत्रण कार्ड भी ऐन वक्त पर छपकर बंटते है तो फिर ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को न्यौता देना या उनका आना संभव ही नहीं रहता है। स्थिति तो यह बन जाती है कि निमंत्रण कार्ड ऐन वक्त तक बंटते रहते है या फिर संबंधितों तक पहुंचने तक नहीं है। जिस तरह से समारोह की तैयारियां अभी से दिखाई दे रही है यदि अभी से ही शासन स्तर पर प्रयास किया जाए तो समारोह के शुभारंभ पर निश्चित ही राष्ट्रपति के आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
स्थानीय समिति की बैठक सिर्फ सुझावों तक सीमित
रही है लेकिन पुराने सदस्यों की यदि माने तो अभी तक की बैठकों का यही इतिहास रहा है कि बैठक तो होती है लेकिन कार्यक्रमों को लेकर अंतिम निर्णय केन्द्रीय कमेटी ही लेती रही है। कुल मिलाकर स्थानीय समिति की बैठक हमेशा से ही सदस्यों के सुझावों को लेने तक ही सीमित रही है। ऐसा पहली बार हुआ है जब समारोह के लिए स्थानीय समिति की बैठक 80 दिन पहले रखी है, ताकि समारोह में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को अतिथि बतौर आमंत्रित किया जा सके। प्रख्यात कलाकारों को प्रस्तुति के लिए अनुबंधित किया जा सके।
गौरतलब है कि कालिदास समारोह समारोह 12 से 18 नवंबर तक होगा। स्थानीय समिति में 89 सदस्यों को शामिल किया गया है। इनमें महिलाएं सिर्फ दो ही शामिल हैं। पहली- साहित्यकार ममता बधेका, दूसरी- नृत्यांगना पलक पटवर्धन। संस्कृत विद्वान के रूप में ज्योतिषविद् पंडित आनंद शंकर व्यास, पद्मश्री डाॅ. भगवतीलाल राजपुरोहित, विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. बालकृष्ण शर्मा, विक्रम विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश्वर शास्त्री मुसलगांवकर को शामिल किया है। साहित्यकारों की श्रेणी में डॉ. शिव चौरसिया, दिनेश दिग्गज माया बधेका, डाॅ. रमण सोलंकी, दुर्गाशंकर रघुवंशी को शामिल किया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि समारोह में बीते वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के कलाकार भी आते रहे है लेकिन इस बार संभावना जताई जा रही है कि इस बार के भी समारोह में विदेशों के कलाकार आकर प्रस्तुति दे सकते है। इसके अलावा आयोजक या सरकार स्थानीय कलाकारों को भी प्राथमिकता दे तो कलाकारों को मंच मिल सकेगा वहीं इनके सुझावों को भी दरकिनार न किया जाए।