सुहगिन महिलाओं एवं कुंवारी कन्याओं ने तीज का व्रत कर की चंद्रमा की पूजा

रुनिजा। रक्षाबंधन पर्व के साथ ही व्रत और त्योहारों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है रक्षाबंधन के बाद भादो पक्ष की कृष्णा तकिया को सातुड़ी तीज का पाव सुहागिन महिलाएं एवं कुंवारी कन्याओं ने गुस्सा के साथ मनाया इस चीज को कजरी तीज नीमड़ी तीज तथा सैटरडे तीज कहा जाता है इस दिन महिलाएं व कन्या मंदिरों में जाकर सामूहिक रूप से या अपने घरों पर मिट्टी की तलाई बनाकर उसमें दूध व पानी से भरकर नीम की दाल लगाकर पूजा करती हैं तथा पूजा के साथ कुछ पानी में नींबू सत्तू का लड्डू ककड़ी आदि फल देखकर चंद्रमा की पूजा कर इस उत्सव को मानती है इस वक्त को करने वाली महिलाएं व कन्याएं बीज की रात्रि में 2 बजके भोजन करती है।
दूसरे दिन उपवास रखती है तथा भोजन नहीं करती। इस दिन गेहूं , चावल या चने का सत्तू बनाकर चंद्रमा की पूजा के बाद सत्तू का भोजन करती है। रुनीजा में बहु सातुड़ी तीज का पर्व उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया। एक दिन पहले सुहागिन महिलाओ हाथो में मेहंदी सजाकर तीज को स्न्नान ध्यान कर सोलह श्रंगार कर तो कुँवारी कन्याओं ने भी सजधज कर पूजा की थाली सजाकर निम की डाली की तलाई की पूजा की था रात्रि में भगवान चन्द्र ( महादेव ) का पूजन कर सत्तू का भोग लगाकर सुहागिनों ने अखंड सौभाग्य की तो कन्याओं ने शिव जैसे वर की कामना की। माहेश्वरी समाज की महिलाओं ने अपने समाज के मन्दिर में सामूहिक तीज का पर्व मनाया तलाई व चंद्रमा की पूजा की। कई घरों में तीज का पर्व मनाया गया।

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