ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में जूनियर डॉक्टर खुद को सुरक्षित नहीं मानते

ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में तीन महीने की अनिवार्य सेवा यानी डिस्ट्रिक्ट रेसिडेंसी प्रोग्राम (डीआरपी) में जूनियर डॉक्टर खुद को सुरक्षित नहीं मानते। उनका मानना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भीड़ द्वारा हमला या विवाद की आशंका रहती है। अस्पतालों में खाने से लेकर रहने तक की उचित व्यवस्था नहीं होती। यही नहीं, करीब आधे से ज्यादा छात्र प्रोग्राम को निरर्थक मानते हैं।

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज की घटना के बाद देशभर में चल रहे आंदोलन के बीच यह जानकारी गांधी मेडिकल कॉलेज के एक प्रोफेसर द्वारा डीआरपी को लेकर करीब 100 जूनियर डॉक्टर पर किए गए एक सर्वे से सामने आई है। इसी महीने किए गए सर्वे के मुताबिक, 24 फीसदी जूनियर डॉक्टर का मानना है कि इस प्रोग्राम से मरीजों को भी कोई लाभ नहीं है। वहीं 57 फीसदी छात्र इसे भविष्य के लिए उपयोगी नहीं मानते हैं। प्रोफेसर डॉ. एसएस कुबरे ने गूगल फॉर्म के माध्यम से डीआरपी पर जूनियर डॉक्टरों से सुझाव मांगे। अधिकतर जूनियर डॉक्टर ने इसे अनुपयोगी बताया। यह प्रोग्राम मरीजों के लिए तो अच्छा है, लेकिन सही रूप से लागू नहीं होने से जूनियर डॉक्टर को नुकसान है।

क्या है डीआरपी
केंद्र सरकार द्वारा राजकीय मेडिकल कॉलेजों में स्नातकोत्तर (पीजी) करने वाले डॉक्टरों को पढ़ाई के दौरान तीन माह जिला अस्पतालों में अनिवार्य ड्यूटी देनी होती है। यह पाठ्यक्रम का हिस्सा होता है। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने इसे डिस्ट्रिक्ट रेसिडेंसी प्रोग्राम नाम दिया है। इसके तहत प्रशिक्षण के बाद डाक्टरों को पीजी की डिग्री दी जाती है। इसका मकसद पीजी डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने का अनुभव देना है। हाल ही में गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) की एक जूनियर डॉक्टर को डीआरपी के लिए दूसरे जिले में भेजा गया। यहां जूडा ने अस्पताल प्रमुख द्वारा हैरेसमेंट की शिकायत कॉलेज डीन को की। मामले की जांच चिकित्सा शिक्षा विभाग और एनएचएम के अधिकारियों द्वारा की जा रही है।