गुरु परंपरा से प्राप्त ज्ञान कुंडलिनी विद्या

कुंडलिनी वह रहस्यमय शक्ति है, जो व्यक्ति के शरीर में सूक्ष्म रूप में व्याप्त है। इसे जगाने की एक विधि है, जिसे गुरु परंपरा से सीखा जा सकता है। जब यह शक्ति जागने लगती है तो विभिन्न मुद्राएं, प्रणायाम या आसन आदि क्रियाएं अपने आप होने लगती है। कुंडलिनी विद्या को गुरु परंपरा से प्राप्त ज्ञान भी कहा जाता है।

यदि साधक तीव्र जिज्ञासु हो और आसन प्राणायाम आदि को तीव्र गति से लंबे समय तक नियमित रूप से करता है तब भी कुंडलिनी जागृत हो जाती है। स्वयं साधना करने से कुंडलिनी जागृत हो जाती है तो भी कुंडलिनी योग परंपरा में ऐसा माना जाता है कि गुरु की कृपा से जागृत शक्ति ही अभी जागृत हुई है। हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है कि जिस प्रकार डंडे की मार खाकर सांप सीधा डंडे की आकृति वाला हो जाता है, उसी प्रकार जालंधर बंध करके वायु को ऊपर ले जाकर कुंभक का अभ्यास करें। साधक धीरे धीरे श्वास छोड़ें। इस महामुद्रा से कुंडलिनी शक्ति सीधी (जागृत) हो जाती है। कुंडलिनी को सहस्त्रार तक पहुंचा कर उसे स्थित रखना है या समाधि को प्राप्त करना है, तब साधक को विकारों का त्याग करना पड़ता है। कुंडलिनी जागृत होने के बाद साधक निरंतर उसका अभ्यास करता है। यदि साधना काल में साधक अपने विकारों को योग के जरिए समाप्त नहीं करता तब वह शक्ति फिर निम्न चक्रों में पतन की आशंका बनी रहती है।