आत्म साक्षात्कार और आत्मानुभव क्या है
हम अक्सर लोगों से सुनते हैं कि आत्मा ही परमात्मा है, किंतु आत्मानुभव और परमात्मा की अनुभूति का न तो हमें पता होता है और न ही कहने वालों को। इसलिए वे कहावत की तरह कह देते हैं और हम उनसे पीछे न रहते हुए हां में हां मिलाकर स्वयं को विद्वान साबित कर देते हैं, किंतु कभी हमें वक्त मिलता है और हम अंतर्मन की ओर मुड़ते हैं तो सोचते हैं कि आत्म साक्षात्कार और आत्मानुभव क्या है?
भौतिक उपलब्धियों के अंबार हम कितने ही एकत्र क्यों न कर लें, हमें परम में डूबे बगैर संतुष्टि नहीं मिल सकती। वही मंजिल है। बुद्ध, महावीर, कृष्ण, राम आदि राजपुत्र थे। जिन भौतिक उपलब्धियों को हम उपलब्धि समझते हैं, उनका उन्होंने सहज त्याग कर दिया था। कारण स्पष्ट था। उन्होंने समय रहते अपने भीतर निहित अनंत की संभावनाओं का अनुभव कर लिया था। उसके बाद उन्होंने बाहर खोज जारी की। कारण यह कि सब कुछ हमें बाहर ही मिलता है। वर्षों की भटकन के बाद जब वे खूब थक गए, तब उन्हें पता चला कि जिसे वो जंगलों-पहाड़ों में तलाश रहे थे, वह तो अंतस में निहित है और उसकी सहज उपलब्धि संभव है। वही आत्मानुभव था। वास्तव में अनंतमुखी होकर भीतर उतरें तो आसानी से अहसास हो सकता है कि हमारे भीतर एक तत्व ऐसा भी है, जो तब भी था, जब हम पांच साल के थे। युवा हुए, अधेड़ हुए और बूढ़े हो गए। हमारा मानसिक विकास होता गया, अनुभवों का ढेर बढ़ता गया, किंतु वह तत्व ज्यों का त्यों है। यहां तक कि बाहर हमारा शरीर जवान से बूढ़ा होता गया कि वही तत्व ज्यों का त्यों साक्षी बना रहा। आत्मरूप को जान लेने के बाद हमारी स्थिति समुद्र में डूबे घड़े की तरह हो जाती है, जिसके भीतर का जल आत्मा, घड़ा शरीर और बाहर का सागर ही परमात्मा है। आत्म साक्षात्कार केलिए हमें कुछ बातों पर ध्यान देना होगा। पहला, यह भाव कि हममें ईश्वर का अंश है। दूसरा यह कि जब हम ईश्वर के अंश हैं तो फिर विभिन्न प्रकार के भयों और असुरक्षाओं से ऊपर हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि जहां पर अदृश्य शक्ति ईश्वर की अनुभूति होती है वहां पर संसार के सारे भय समाप्त हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में जब आप आत्म साक्षात्कार के लिए ध्यान करते हैं,तब आपको अनुभव होता है कि ईश्वर अंतस के संसार में छिपा है और आपको यह भी अनुभव होता है कि आपके अंतर्मन में ऊर्जा का अक्षय भंडार निहित है।