राजस्व अभियान में तहसीलदार जारोलिया की जमकर मनमानी, कलेक्टर की साख को बट्टा लगाने में कोई कसर नही छोड़ी

 

 

 

इंदौर। राजस्व महाअभियान में तहसीलदारों की मनमानी चरम पर बताई जा रही हू। प्रकरण समाऐ करने के लिए कुछ तहसीदारों ने अधिकतर प्रकरणों को खारिज करने का काम किया। कुछ विवादित मामलों में बिना जांच किए एक पक्ष को लाभ पहुंचाने का काम भी किया।
आवेदन के निराकरण को लेकर कुछ आवदेकों को उच्च अधिकारियों की न्यायालय में जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। कुछ मामलों में उच्च अधिकारियों के साथ ही लोकायुक्त में भी शिकायत की गई है। इसी तरह का एक मामला सामने आया है जिसके अनुसार नायब तहसीलदार जूनी इंदौर शिवशंकर जारोलिया के निर्णय को लेकर आपत्तिकर्ता ने आरोप लगाते हुए कहा है कि तहसीलदार ने विवादित नामांतरण प्रकरण में फर्जी दस्तावेज के माध्यम से नामांतरण का प्रकरण पंजीबद्ध किया गया। जिसमें आवेदक ने जो दस्तावेज पेश किए उनका कोई भी लिंक नहीं है। दो रजिस्ट्री पेश की गई उसमें प्रथम में कोई खसरा नंबर नहीं है और उसके बाद जो दो मुख्तियार नामा है उसमें भी खसरें का उल्लेख नहीं है, लेकिन दूसरी रजिस्ट्री पेश की गई उसमें प्लाट नंबर के साथ ही खसरा नंबर का उल्लेख किया गया है।
नायब तहसीलदार ने प्रकरण में विवादित नामांतरण आवेदन का जल्द से जल्द निराकरण करने का प्रयास किया। उन्होंने लिंक दस्तावेज की जांच किए बिना ही नामांतरण आदेश जारी कर दिया। जिसको लेकर आपत्तिकर्ता व खसरे के अनुसार जमीन मालिक ने अपना पक्ष भी रखा, लेकिन तहसीलदार ने उनकी आपत्ति को खारिज कर दिया।
आपत्तिकर्ता ने लोकायुक्त में शिकायत करते हुए आरोप लगाया है कि आवेदन में खसरे सहित कई दस्तावेज में खामियां होने के बाद भी सुनवाई नहीं करते हुए पुस्तैनी जमीन पर नामांतरण कर दिया। आदेश के साथ ही एक ही दिन में संयुक्त खाते में नाम भी दर्ज करवा दिया गया।
मामले को लेकर जूनी इंदौर नायब तहसीलदार के खिलाफ, मुख्यमंत्री , संभागायुक्त व कलेक्टर सहित लोकायुक्त में भी शिकायत की गई है। शिकायतकर्ता फूलचंद कुशवाह ने बताया कि ग्राम पिपल्याराव स्थित भूखंड क्रमांक 42/18 क्षेत्रफल 3600 वर्गफीट रजिस्टर्ड विक्रय पत्र क्रमांक 2842 (क) दिनांक 4 /12/ 2006 के माध्यम से उक्त भूमि क्रय करना बताया गया है। जिस रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के माध्यम से उक्त भूमि के राजस्व अभिलेख में नामांतरण किए जाने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया है।
उन्होंने बताया कि गुरुचरण कौर पति अमरजीत सिंह खनूजा एवं अन्य विरूद्ध अनिल कुमार के आवेदन पत्र में ग्राम पिपल्याराव की सर्वे नंबर 305/1/2/2 में से क्रय की गई 3600 वर्गफीट पर नामांतरण के लिए आवेदन किया गया है। उसकी पहली रजिस्ट्री में सर्वे नंबर दर्ज नहीं है जबकि दूसरी रजिस्ट्री में नंबर खसरा नंबर 305/1 का उल्लेख किया गया है। अनिल कुमार कन्हैयालाल जिराती ने जो रजिस्टर्ड विक्रय पत्र (रजिस्टर्ड विक्रय क्रमांक 1 अ /4378 दिनांक 13/12/1984) काशीराम आत्मज चुन्नीलाल कुशवाह से होना बताया है।
रजिस्ट्री में सिर्फ मकान नंबर का उल्लेख है, किसी भी प्रकार के खसरे कोई उल्लेख नहीं किया गया है। जमीन किस सर्वे नंबर की है या खसरा कौन सा था उसका कोई उल्लेख नहीं है। उस भूखंड की चतु: सीमा भी अलग है। आपत्तिकर्ता ने आरोप लगाया है कि अनिल कुमार ने जो रजिस्टर्ड विक्रय पत्र गुरबचन कौर पति अमरजीत सिंह खनूजा को रजिस्टर्ड विक्रय क्रमांक 2842 (क) दिनांक 4 /12/2006 को किया है उसमें पूर्व के दस्तावेज का उल्लेख तो किया है लेकिन उसमें खसरा नंबर 305/1 का उल्लेख नहीं किया गया है। पूर्व के लिंक दस्तावेज और गुरबचन कौर पति अमरजीत सिंह खनूजा के रजिस्टर्ड विक्रय पत्र में समानता नहीं है। आवेदक ने अपने आवेदन में शपथ पत्र, मुखतियार नामा सहित कई दस्तावेज तहसील न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किए।
गुरबचन ने मुख्तियार नामे से जमीन खरीदी है। अनिल कुमार जिराती ने अमरजीत सिंह खनूजा को आम मुख्तियार 26 दिसंबर 1995 को किया।
एक अन्य आम मुख्तियार अनिल कुमार जिराती ने 27 अक्टूबर 1995 को निष्पादित किया है। दोनों आम मुख्तियार में भी किसी भी प्रकार के खसरे या सर्वे नंबर का कोई उल्लेख नहीं है।
मामले में जमीन मालिक मोर सिंह कुशवाह का कहना है कि तहसीलदार ने उनका पक्ष सुनने के बजाए एक तरफा फैसला किया है। कार्यप्रणाली को लेकर हमने न्याय नहीं मिलने की संभावना जताते हुए कलेक्टर व एसडीएम को आवेदन किया था लेकिन सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने आरोप लगाया है कि आवेदक द्वारा उक्त जमीन पर कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है।
जिसकी पुलिस रिपोर्ट भी की गई है और जिला न्यायालय में भी प्रकरण विचाराधीन है।मामले में मुख्यमंत्री से लेकर लोकायुक्त तक शिकायत की है।

Author: Dainik Awantika