जब कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है तो……

बहुत से लोग कहते सुने जाते हैं कि मेरी कुंडलिनी जाग्रत है, या जाग रही है। स्वात्माराम योगी के अनुसार योग साधना में लगे दस में से आठ लोगों को लगता है कि उनकी कुंडलिनी जाग रही है। लेकिन क्या यह सच है? इस विषय में की गई खोज जो यह बताती है कि ज्यादातर दावे खोखले ही हैं। लेकिन वे गलत भी नहीं है।
एक दायरे में साधना कर रहे योगियों को पता चल जाता है कि किसी की कुंडलिनी जागृत हुई है। उस समय योगियों को आकाश में बिजली कौंधने और मेघों के गरजने जैसी अनुभूति होती है। अनुभूति के दायरे का विस्तार इस बात पर निर्भर है कि वहां का क्षेत्र कितना बड़ा है, यानी कितने साधक साधना का अभ्यास कर रहे हैं। योगी स्वात्माराम का कहना है कि संयम और सम्यक नियमों का पालन करते हुए ध्यान करते रहने से धीरे धीरे कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है और जब यह जाग्रत हो जाती है तो व्यक्ति पहले जैसा नहीं रह जाता। वह दिव्य पुरुष बन जाता है। जब कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है तो पहले व्यक्ति को उसके मूलाधार चक्र में स्पंदन का अनुभव होने लगता है। फिर वह कुंडलिनी तेजी से ऊपर उठती है और किसी एक चक्र पर जाकर रुकती है उसके बाद फिर ऊपर उठने लग जाती है। जिस चक्र पर जाकर वह रुकती है उसको व उससे नीचे के चक्रों में स्थित नकारात्मक उर्जा को हमेशा के लिए नष्ट कर चक्र को स्वस्थ और स्वच्छ कर देती है। संत ज्ञानेश्वर ने ओबी छंदों में लिखी गीता पर अपनी टीका ज्ञानेश्वरी में इस विषय पर विशद प्रकाश डाला है। उल लक्षणों को आधिकारिक प्रमाण बताते हुए स्वात्माराम योगी ने कहा है कि अपने आसपास जब भी कोई कुंडलिनी जागने का दावा करता या आश्वासन देता दिखाई दे तो यकायक मान नहीं लेना चाहिए। एक सूत्र याद रखें कि अनुभव जितना भी गहन होगा, उतने ही श्रम और साधन की जरूरत महसूस करेगा।