हिन्दी के साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी हो सकेगी एमबीबीएस की पढ़ाई…

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उज्जैन। उज्जैन या मालवा निमाड़ अंचल के उन विद्यार्थियों के लिए यह काम की खबर है कि यदि वे हिन्दी भाषी है और एमबीबीएस करना चाहते है तो निश्चित ही उनकी यह ख्वाहिश पूरी हो सकती है क्योंकि अब राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने न केवल हिन्दी बल्कि क्षेत्रीय भाषाओं में भी पाठ्यक्रम की शिक्षा देने का फैसला किया है। बता दें कि इसके पहले मध्यप्रदेश में हिन्दी का प्रयोग एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में हो चुका है।
भोपाल से प्राप्त जानकारी के अनुसार इसके पीछे उद्देश्य यह है कि अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं के भाषी लोग चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर सकें और आम आदमी अपनी भाषा में रोग और दवाओं को समझ सके। गौरतलब है कि मप्र पहला राज्य है, जहां सबसे पहले अंग्रेजी के साथ मातृभाषा यानी हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई की शुरुआत हुई थी। जानकारी के अनुसार मप्र द्वारा दिखाई गई राह का अनुसरण करते हुए अब राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने अंग्रेजी भाषा के साथ द्विभाषी मोड का उपयोग करके शिक्षण सीखने और मूल्यांकन की अनुमति दी है। एनएमसी ने हाल में जारी योग्यता आधारित चिकित्सा शिक्षा विनियम (सीबीएमई) 2024 में इसका उल्लेख किया है, जिसमें एमबीबीएस पाठ्यक्रम के संबंध में नियम और विनियम निर्धारित किए गए हैं। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशानुरूप तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में चिकित्सा पाठ्यक्रम को हिन्दी में तैयार करने का निर्णय लिया। इस निर्णय को अमल में लाने के लिए कार्ययोजना बनाकर तीव्र गति से कार्य किया गया। तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के नेतृत्व में उच्च स्तरीय टास्क फोर्स समिति गठित की गई। साथ ही विषय निर्धारण एवं सत्यापन कार्य के लिए समितियों का गठन किया गया। प्रदेश के 97 डॉक्टरों की टीम ने चार महीने में दिन-रात काम कर अंग्रेजी की किताबों का हिंदी में अनुवाद किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 16 अक्टूबर, 2022 को भोपाल में एमबीबीएस पाठ्यक्रम की हिंदी किताब लॉन्च की थी। इससे चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में हिंदी बनाम अंग्रेजी विवाद पैदा हो गया, क्योंकि चिकित्सा बिरादरी के सदस्यों ने चिंता जताई थी कि हिंदी जैसी स्थानीय भाषा में एमबीबीएस पाठ्यक्रम चलाने से भारत में चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता खराब हो सकती है। अखिल भारतीय चिकित्सा संघ ने भी एक प्रेस रिलीज जारी कर इस पहल के बारे में इसी तरह की राय व्यक्त की थी और संभावना व्यक्त की थी कि हिंदी में एमबीबीएस लंबे समय में राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचा सकता है।

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