खुसूर-फुसूर मंदिर को लेकर विद्वतता से ही बोलें…!
दैनिक अवंतिका उज्जैन
खुसूर-फुसूर
मंदिर को लेकर विद्वतता से ही बोलें…!
हाल ही में मंदिर और उससे जुडे एक शब्द को लेकर जमकर बयानबाजी का दौर सामने आ रहा है। सभी विद्ववत अपने विचार एवं अपने सुझाव रख रहे हैं। अच्छी बात है लोकतंत्र है विचार एवं सुझाव सभी के बेहतर हैं। विचार,सुझाव ही तो हैं कौन सा गजट नोटिफिकेशन हो गया है। इस विचार एवं सुझाव पर भी कुछ लोगों को बडी आपत्ति हो रही है कह रहे हैं कि मंदिर को लेकर वे ही बोलेंगे या समिति ही बोलेगी। उनके लिए ये वाकिया यहां दिया जा रहा है। करीब 17 वर्ष पूर्व उज्जैन में एक आईजी आए थे वे बडे विद्वत और सनातन धर्म से ओतप्रोत थे उन्हें कंठस्थ रामचरित मानस थी। सूधी पाठक बिलकुल सही समझे हैं ये वहीं हैं जिन्होंने निर्वाचन आयोग के मुख्य अधिकारी के सामने कहा था जाहि विधि राखे राम ताहि बिधि रहिए। तो बात उनके उज्जैन आने के बाद और मंदिर से ओतप्रोत होने की है। एक दिन उन्होंने तत्कालीन मंदिर के कुछ प्रमुख जिम्मेदारों से पूछा इसका पुरातन इतिहास क्या है। उन्हें जवाब मिला करीब 2500 साल । जवाब सूनकर उन्होंने विचार किया और उसके बाद उन्होंने एक लघु शोध कर डाला जिसमें उन्होंने बताया कि 5हजार साल से कम पुराना नहीं है मंदिर। उन्होंने गुफा का वास्तविक स्थिति बताई की यह काग भूसुंडी जी के गुफा है। उन्होने यहां बैठकर तपस्या की थी। मंदिर समिति ने उनके आग्रह पर परिसर में इसका चित्रण करवाया था। यही नहीं गर्भगृह में संबंधित स्थल पर काग भूसुंडी जी की गुफा लिखवाया गया था। समय बीता और वे यहां से चले गए। इसके बाद मंदिर एवं मंदिर समिति से कितने लोगों ने अब तक कितने शोध किए हैं यहां ? खुसूर –फुसूर है कि मंदिर को लेकर विद्वतों को सनातन अनुसार अपने पक्ष रखने का अधिकार है । शेष के लिए धर्मस्व विभाग है। अब इसमें ये कहना कि मंदिर को लेकर उससे जुडे लोग ही बोलेंगे । इसे कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता है। समिति विचार करेगी यह सही है। मंदिर से जुडे लोग इस तरह का वातावरण न बनाएं जिससे की श्रद्धालुओं सहित विद्वतों में उन्हें लेकर किसी तरह का विचार और चिंतन खडा हो।