बाजार में घास की कीमत दिन प्रति दिन बढ रही,ग्राम वन समितियों में कम हो रही घास में भ्रष्टाचार का मेल,हो रहा लाखों का खेल -घट्टिया और उज्जैन की 5 घास बीडों में हर साल 10 प्रतिशत वृद्धि के बावजूद आय में कमी

दैनिक अवंतिका उज्जैन । बाजार में हर साल घास की कीमत बढ रही है और वन समितियों में घास की कीमत घट रही है। घास बीड में हर साल 10 प्रतिशत वृद्धि के बावजूद भ्रष्टाचार का मेल शामिल हो गया है और लाखों का खेल किया जा रहा है। समिति के वास्तविक मवेशी वाले कृषक तो घास से वंचित हैं और जुगाड के कृषक बाजार में घास बेचकर कमा रहे हैं उलटे पैसा भी जमा नहीं कर हर वर्ष अपने ही परिवार के अन्य के नाम से घास बीड के गाले (एक निश्चित आकार का क्षेत्र) कबाड रहे हैं।बिहार के घास घोटाले की तरह उज्जैन में भी सालों से घास बीड में घोटाले हो रहे हैं। बडे ही तरीके से वन समिति और उसके कर्ताधर्ता पूरे मामले को रफा-दफा कर रहे हैं। नियमों के नाम पर यहां लीपापोती हो रही है। सैंकडों हेक्टेयर की घट्टिया और उज्जैन की कुल 5 घास बीड में तकरीबन सभी जगह यही हाल हैं। केसूनी बीड के हाल कुछ ज्यादा ही खस्ता बताए जा रहे हैं। मूलत:वन समिति सदस्य एवं  किसानों को यह घास मवेशियों के लिए लेने का अधिकार है। इसके उलट सब कुछ इसमें हो रहा है। मवेशी घर में नहीं हैं लेकिन गाले वन समिति सचिव ने प्रदान किए हैं। घास बाजार भाव से बेची जा रही है और वन समिति को पैसा तक नहीं मिल पा रहा है।उज्जैन-घट्टिया में 5 घास बीड-उज्जैन एवं घट्टिया के अंतर्गत कुल पांच घास बीड हैं। इनमें नौलखी (पाटपाला-जयवंतपुर) बीड उज्जैन के अंतर्गत एवं केसूनी,गुनई,भूतिया,पिपलिया बीछा की घास बीड घट्टिया के अंतर्गत आती है। करीब सभी घास बीड 25 हेकटेयर से अधिक की बताई जा रही है। प्रत्येक घास बीड में प्रति वर्ष होने वाले घास की कीमत वर्षों पहले 3 लाख थी।  इनमें वनरक्षक राकेश वाडिया, गोविंद राठौर, राजकुमार शर्मा समितियों के सचिव है और उनके सुपर विजन अधिकारी के रूप में वन परिक्षेत्र सहायक डिप्टी रेंजर मदन मौरे पदस्थ हैं।हर वर्ष 10 प्रतिशत वृद्धि का प्रावधान फिर भी घाटा-सभी घास बीड में हर वर्ष 10 प्रतिशत वृद्धि के साथ सदस्यों को उसके गाले देने का प्रावधान है। इसके बावजूद भी वन समितियों को कोई खास आय नहीं हो रही है। यदि सिरे से हिसाब लगाया जाए तो उलटा घाटा ही हो रहा है। वन समितियां स्थानीय स्तर पर इसका न लाभ न हानि का आडिट करवा कर अपने काम की इतिश्री कर रहे हैं और बडे ही तरीके से इसमें वन विभाग को चूना लगाया जा रहा है।ये है नियमों का घोटाला-वन समितियों के सदस्यों को उनके पशु के मान से गाले देने का प्रावधान हैं। इसके लिए सदस्य को चालान से वन समिति के जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के खाते में पैसा जमा करना होता है। रसीद बताने पर सचिव प्रावधान अनुसार गाला उपलब्ध करवाता है। ऐसा नही होते हुए वन समिति सचिव घर –घर नकद पैसे एकत्रित करता रहता है। जो कि नियमों के प्रतिकुल है। पूर्व सामंजस्य के साथ कुछ कृषक एक के स्थान पर दो गाले की घास काट लेते हैं या फिर दो गाले का एक कर दिया जाता है। जबकि उनके घर मवेशियों की संख्या नहीं के बराबर होती है। इसमें एक गाले का ही पैसा जमा करवाया जाता है। नियमानुसार घास का उपयोग समिति के लोग ही करेंगे ऐसे में समिति के कई सदस्य मवेशी पालक विहीन होने पर भी घास काट लेते हैं और उसे बाजार में अच्छी दर पर बेच कर पैसा कमा लेते हैं। समिति में पैसा जमा नहीं करने और घास काट लेने वाले कृषक को ब्लेक लिस्टेड किया जाता है। अगले वर्ष ब्लेक लिस्टेड कृषक अपने ही परिवार में अन्य के नाम से गाला लेकर घास काट लेता है। इसी तरह से समिति में मिली भगत के साथ सक्रिय रूप से चुना लगाया जाता है।समिति को साध कर बाजार में घास विक्रय से लाभ-कतिपय कृषक वन समिति को साधकर बीड से घास काटकर शहर में बेचते हैं। शहर में आते ही इसी घास की कीमत 3-4 गूना हो जाती है। इसके चलते अच्छा खासा लाभ सामंजस्य के साथ कमाया जाता है। वन समिति को उस लाभ का धैला भी नहीं मिल पाता है। वन समिति के सदस्यों को साधकर जिनके घर मवेशी नहीं होते हैं ये वे मवेशी बेच देते हैं ऐसे कृषकों को शहर के घास व्यापारी साध कर जमकर लाभ कमा रहे हैं। इसमें कृषकों को भी हिस्सा मिल रहा है। हाल यह है कि समिति के सदस्यों की भूमिका भी शंकास्पद हो चली है। पशु नहीं होने पर भी कृषकों को घास बीड का गाला स्वीकृत किया जा रहा है।फोरा आडिट,जमकर घालमेंल-वन समितियों के आडिट की स्थिति यह है कि मात्र फोरा काम चलाउ आडिट करवाया जाता है। आडिट का कोई भी हिस्सा इसमें भौतिक रूप से सत्यापित नहीं बताया जाता है। बाजार में वन समिति सचिव और अध्यक्ष ही परबारे इस काम को अपने परिचित के माध्यम से अंजाम दिलवा देते हैं। घास बीड पर अनियंत्रण के हाल रहते हैं। सचिव के निवास के लिए यहां मकान बने हुए हैं लेकिन एक भी घास बीड में सचिव निवास नहीं करते हैं। सभी उजजैन में निवास कर रहे हैं जिससे बीड में मनमानी का आलम रहता है। सचिव से एक बार संबंधित कृषक गाला लेते हैं उसके बाद कथित सामंजस्य से बगैर पैसा दिए ही गाले से घास काटी जाती है। ब्लेक लिस्टेड होने पर अगली बार परिवार के अन्य सदस्य नाम से गाला ले लिया जाता है और सचिव उसे रोक भी नहीं पाते हैं। मवेशी नहीं होने वाले कृषक गाला लेकर उसे बाजारी व्यक्ति को बेंचकर अपना लाभ कमा लेते हैं।इसे कहते हैं घास बीड का गाला-वास्तव में उज्जैन एवं घट्टिया क्षेत्र में स्थित 5 घास बीड कई हेक्टेयर क्षेत्र की हैं। इनमें बीड को लंबाई के मान से चिंदी में काटा जाता है। यह कार्य वन समिति की देखरेख में ही वन रक्षक करते हैं।कई बार चिंद्दे 2 बीघा तक के होते हैं। इनमें एक निश्चित आकार के गाले बनाए जाते हैं। उस आकार के स्थान पर उगी घास एक गाले की कहलाती है।दो बार निकलती है घास-एक गाले में मानसून एवं उसके बाद दो बार घास निकाली जाती है। एक गाले से करीब 2 ट्रक से अधिक घास संबंधित सदस्य किसान को मिल जाती है जो कि उसके मवेशियों के दो से तीन माह का भरण होता है। इसके साथ ही घास की गंजी काट कर उसका ढेर लगा दिया जाता है। बारिश उपरांत उसके थैले भरकर बाजार में अच्छे दाम पर बेंच दिया जाता है। इसमें वन विभाग को धैला नहीं मिलता है।10 प्रतिशत आय बढने की बजाय घास घट रही-हाल यह है कि वन समितियों की घास बीड में भ्रष्टाचार के मैल से लाखों के खेल में अब आश्चर्यजनक स्थितियां सामने आने लगी है। बीड के घास की कीमत प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत बढकर आया होना चाहिए , इसके उलट आय बढाने पर बीडों में घास घटाई जा रही है। इसके साथ ही बीडों में प्लांटेशन की जगह बढाने पर घास की कीमत बढना चाहिए उसके उलट घास की कीमत घट रही है। समितियों में जमा होने वाली राशि भी वर्ष प्रति वर्ष कम हो रही है।