उपज में सुधार नहीं, विकल्पहीन किसान

सोयाबीन उत्पादन के मामले में मध्य प्रदेश भले ही देश में पहले पायदान पर है लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रदेश में सोयाबीन की खेती का रकबा और उत्पादन दोनों अस्‍थ‍िर रहे हैं। राज्य का मालवा क्षेत्र (भोपाल, गुना, रायसेन, सागर, विदिशा, देवास, सीहोर, उज्जैन, शाजापुर, इंदौर, रतलाम, धार, झाबुआ, मंदसौर, राजगढ़, नीमच) सोयाबीन की खेती के लिए जाना जाता है।

किसानों का कहना है कि सोयाबीन की खेती बदलते मौसम की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। कभी कम अंतराल पर ज्यादा बारिश तो कभी बहुत कम। ऐसे में क‍िसान दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं। कुछ किसानों ने जहां सब्जी की खेती शुरू कर दी है तो वहीं कुछ किसानों ने धान बोना शुरू कर द‍िया है।   मध्य प्रदेश सरकार के अनुसार सोयाबीन पहले यहां के किसानों की पसंदीदा उपज हुआ करती थी। लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से अब किसान दूसरी खेती कर रहे हैं। हालांकि कुछ किसान अभी भी मजबूरी में सोयाबीन की ही खेती कर रहे हैं। पैदावार घटने से राज्‍य में सोयाबीन प्रोसेस की कंपनियां भी प्रभावित हुई हैं। सोयाबीन किसान और व्यवसायियों के संगठन सोपा का दावा है कि हाल के वर्षों में पैदावार घटने की वजह से कई कंपनियां बंद हो चुकी हैं। वहीं भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान ने बताया कि वे ऐसी किस्मों पर काम कर रहे हैं जो प्रतिकूल मौसम में भी अच्छी पैदावार देगा। कई किसान अब सोयाबीन की खेती छोड़कर धान और मकई की खेती की ओर बढ़ रहे हैं। सोयाबीन की खेती का रकबा कम होने के पीछे कई कारण हैं, जिनमें मुख्य हैं: मौसम में बदलाव, कृषि लागत में बढ़ोतरी और उत्पादन में कमी।

खराब किस्म के बीज के कारण उत्पादन में कमी

मध्य प्रदेश में 55-60 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती होती है, जो देश में सबसे बड़ा क्षेत्रफल है। मध्य प्रदेश में सोयाबीन पर अनुसंधान की सुविधाएं भी हैं, लेकिन अभी तक मौसम प्रतिरोधी सोयाबीन की किस्म उपलब्ध नहीं कराई गई है। पहले से चली आ रही फसल की प्रतिरोधक क्षमता अब खत्म होने की कगार पर है, जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ रहा है। किसानों के अनुसार, खेती की लागत बढ़ रही है, लेकिन खराब किस्म के बीज के कारण उत्पादन में कमी आ रही है। इससे किसानों को कम रिटर्न मिल रहा है। इस कारण किसान सोयाबीन की खेती छोड़कर धान और मकई की खेती की ओर जा रहे हैं।