कई गांवों में बाजरा के खेत जलमग्न….

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मुरैना । सितंबर महीना बाजरा की फसल के पकने का समय है और इस समय लगातार हो रही बारिश ने किसानों को संकट में ला दिया है। कई गांवों में बाजरा के खेत जलमग्न हैं। फसल गल रही है।

ऐसे में यदि गुणवत्ता प्रभावित रही तो जो अनाज समर्थन मूल्य पर नहीं बिक पाएगा। इससे पहले के तीन सालों में भी चंबल के किसानों का बाजरा समर्थन मूल्य पर नहीं बिक सका था। चंबल के मुरैना और भिंड जिले में प्रदेश का 85 फीसद से ज्यादा बाजरा उत्पादन होता है। मुरैना में दो लाख और भिंड में 70 हजार हेक्टेयर में बाजरा की खेती हो रही है। इस समय फसल में बालियां आ गईं है, दाने बन रहे हैं। दूसरी तरफ अतिवर्षा से हालत यह है, कि बाजरा के खेतों में चार से छह फीट तक पानी भर गया है। लगातार बारिश व जलभराव ने बालियों के फूल झड़ गए हैं, दाने छोटे रह जाएंगे और काले रंग के धब्बे पड़ने की आशंका है। समर्थन मूल्य पर वही अनाज खरीदा जाता है, जो फाइन एवरेज क्वालिटी (एफएक्यू) जांच में पास हो। छोटे आकार व काले धब्बों के कारण बीते तीन साल से समर्थन मूल्य के लिए चंबल का बाजरा फेल हो रहा है। इस साल बारिश व बाढ़ ज्यादा है, इसीलिए किसान चिंतित हैं। धान की खेती पानी के बीच होती है, लेकिन लगातार हो रही भी धान पर दुष्प्रभाव डाल रही है। खेतों में इतना पानी भर गया है, कि धान के पौधे पानी के अंदर दो-दो फीट गहरे डूबे हुए हैं। जहां धान के पौधे लहलहा रहे थे, वहां जलभराव से तालाब जैसा नजारा है। मुरैना में 6000, भिंड में 75000 और श्योपुर में 40000 हेक्टेयर में धान की फसल हो रही है।

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