खुसूर-फुसूर बुरा समय हो तो उंट पर बैठने वाले को भी कुत्ता काट लेता है कहावत है कि बूरे दिन हों तों उंट पर बैठने वाले को भी कुत्ता काट जाता
खुसूर-फुसूर
बुरा समय हो तो उंट पर बैठने वाले को भी कुत्ता काट लेता है
कहावत है कि बूरे दिन हों तों उंट पर बैठने वाले को भी कुत्ता काट जाता है। ऐसा ही कुछ विपक्ष के साथ हो रहा है। आए दिन उसके मुद्दे पलटी खा जाते हैं या फिर आंदोलन में कहीं न कहीं गडबड हो जाती है या फिर कुछ बोल वचन गडबडा जाते हैं और पक्ष उसे मुद्दा बनाकर खेल का पाला ही बदल देता है। हाल ही में किसानों की मांग को लेकर किसानों के संगठन ने यात्रा निकाली थी। इस रैली में लक्ष्य से दोगुने से अधिक ट्रेक्टर आए थे। कई ट्रेक्टरों को पंजीयन अभाव में वापस करना पडा था और शहर में चौतरफा जाम के हालात बने थे। भरी दोपहर के टाईम में ही रैली का आयोजन किया गया था। नेठू किसान ही रैली में आए थे। उनकी मांग भी सोयाबीन के रेट बढाने की ही रही थी। विपक्ष की यात्रा में भी मुद्दा किसान हित का था और तकरीबन उतनी ही लंबी यात्रा निकाली गई। ट्रेक्टरों की संख्या कुछ कम रही । विपक्ष की यात्रा में एक जनप्रतिनिधि को चक्कर आ गए और यातायात की डयूटी संभाल रहे नगर के एक परिवार कर्ताधर्ता असमय ही काल कवलित हो गया। खुसुर-फुसूर है कि एक जैसे दो आंदोलन हुए। दोनों में तकरीबन सबकुछ समान था। इसके विपरित एक का समय खराब था तो दो घटनाएं हो गई। इसे कहते हैं उंट पर बैठे को कुत्ता काट ले वाली स्थिति।