बजट के अभाव में दम तोड़ रही जल जीवन मिशन योजना, एमपी में ही 15 सौ करोड से अधिक का भुगतान अटका

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उज्जैन।  पूरे प्रदेश के साथ ही उज्जैन जिले में भी   भले ही जल जीवन मिशन के तहत घर- घर तक शुद्ध
पेयजल पहुंचाने के दावे किए जाते है लेकिन बताया जा रहा है कि योजना को अभी भी बजट का इंतजार है और यही कारण है कि बजट की पूर्ति नहीं होने के कारण योजना दम तोड़ रही है।

मार्च 2024 तक घर-घर पीने का शुद्ध पानी पहुंचाने के मकसद से शुरू की गई जल जीवन मिशन योजना अफसरों के मकडज़ाल में इस कदर फंस गई है कि वह अधर में लटक गई है। अब यह योजना कब पूरी होगी कुछ नहीं कहा जा सकता। दरअसल बजट की कमी और पहले से हो चुके काम का भुगतान न होने के कारण यह योजना अटक गई है।

केंद्र ने इस वित्त वर्ष में मप्र को मिशन के लिए 4,044 करोड़ रु. और राज्य ने 7,671.60 करोड़ रु. का अलॉट किए हैं। जल जीवन मिशन की गाइडलाइन के मुताबिक वर्क ऑर्डर में केंद्र-राज्य का हिस्सा 50-50 प्रतिशत और व्यावसायिक गतिविधियों में 60-40 प्रतिशत होगा। बीते साल जल जीवन मिशन के तहत मप्र में 10,773.41 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। फिलहाल इस योजना के तहत 1500 करोड़ रु. से अधिक राशि का भुगतान रुका हुआ है। पुराने आंकड़ों को देखते हुए 2024-25 में राज्य में इस योजना के लिए कम से कम 17,000 करोड़ रु. की जरूरत होगी। मप्र ने केंद्र को बताया है कि नल जल योजनाओं के लिए 78 हजार करोड़ की राशि मंजूर है। मार्च 2024 तक करीब 28 हजार करोड़ खर्च हो चुके हैं। बीते वर्ष 10 हजार करोड़ से अधिक का काम किया गया। इस बार काम रुक गया है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री संपतिया उइके ने बताया कि प्रदेश का करीब 1500 करोड़ से ज्यादा का पैसा केंद्र से रुका हुआ है। मांग पत्र भेजा गया है। जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना पर अफसरशाही का शिकंजा है। यही वजह है कि बजट जारी नहीं हो रहा और देशभर में काम ठप है। बताया जा रहा है कि कार्य की गुणवत्ता की जांच करवाने के लिए केंद्रीय अधिकारियों ने फंड रोका है। पता चला है कि आठ मापदंडों पर पूरे प्रोजेक्ट की समीक्षा करवाई जा रही है। इसमें पानी की उपलब्धता, नल में पानी का दबाव, खर्च राशि का आकलन, प्रति नल खर्च का आकलन जैसे बिंदु शामिल हैं। इधर, राज्यों ने तर्क दिया है कि जांच अलग से चलती रहे और काम भी होता रहे। ऐसा करके ही लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। एक बार काम रुका तो फिर से इसे शुरू करने में खर्च भी बढ़ सकता है। अफसरों ने बजट आवंटन रोक दिया है। इससे मिशन के तहत जारी काम ठप हो गए हैं।

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